सरकार,आज तक यही तय नहीं कर सकी है कि मुर्गी पालन किस दर्जे का कारोबार है। क्योंकि मुर्गी पालन (पोल्ट्री) के कारोबारियों को बिजली को कामर्शियल रेट पर खरीदता है। बिजली इस धंधे की बहुत बड़ी जरूरत है। गर्मियों में मुर्गी के दड़बों के भीतर ठंडक के लिए कूलर और जाड़े के दिनों में ब्रूडर की जरूरत होती है।
देश में हर रोज करीब 25 करोड़ अंडे का उत्पादन होता है। चिकन की डिमांड भी बहुत है. विश्व के अंडा उत्पादन में भारत का दूसरा और चिकन में पांचवा स्थान है। पोल्ट्री उत्पाद निर्यात भी होते हैं। इंडियन पोल्ट्री को दुनिया में बेहतर माना गया है। पोल्ट्री किस श्रेणी में आता है? अक्टूबर महीने यह सवाल भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी सिंह भी उठा रहे हैं।
गर्मी ही नहीं सर्दियों में भी पोल्ट्री फार्म के लिए 24 घंटे बिजली बहुत जरूरी है। मुर्गियों को बाहरी तापमान से बचाने के लिए पोल्ट्री फार्मर को बिजली की खासी जरूरत होती है। इस बारे में पोल्ट्री जानकारों का कहना है कि कहने के लिए हम पोल्ट्री फार्मर हैं, लेकिन बिजली मिलती है कमर्शियल रेट पर।
अंडा और चिकन के लिए संचालित फार्म संचालक को पोल्ट्री फार्मर भी कहा जाता है, लेकिन बिजली और बिजली कनेक्शन उसे एग्रीकल्चर रेट पर नहीं मिलता है।
भारत से अंडे के बढ़ते निर्यात को देखते हुए सरकार इसको बढ़ावा दे रही है। लेकिन हजारों लोगों को रोजगार मुहैया कराने वाले इस धंधे को चलाने को बिजली का बिल उसे कमर्शियल रेट पर भरना होता है। इतना ही नहीं पोल्ट्री फार्म ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में होते हैं तो बिजली भी 24 घंटे नहीं मिल पाती है।