खरीफ के लिए मक्का कम अवधि में तैयार होने वाली फसल है। उत्तराखंड में भी खरीफ के सीजन में बड़े पैमाने पर मक्के की खेती की जाती है. किसानों को मक्के की अधिक उपज दिलाने के लिए और इसकी खेती के जरिए किसानों की आय बढ़ाने के लिए उत्तराखंड में मक्के की एक नई किस्म विकसित की गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अधिकारिक एक्स हैंडल पर पोस्ट करके इस बात की जानकारी दी गई है। मक्के ही यह नई विकसित वेरायटी अच्छी क्वालिटी और अच्छी उपज के लिए जानी जाएगी।
उत्तराखंड के लिए खासतौर पर विकसित किस्म के बारे में जानकारी दी गई है कि मक्के का आकर लंबे सिलेंडर की तरह होता है। इसके ऊपरी हिस्से में पर्याप्त मात्रा में कवर भी होता है। इसके दाने का आकार मध्यम होता है। इसके एक हजार दानों का वजन लगभग 275 ग्राम तक हो सकता है। इसके साथ ही मक्के की यह किस्म कीट रोधी भी है। मक्के की यह किस्म टर्सियम लीफ ब्लाइट रोग की प्रतिरोधक क्षमता रखती है। इसकी पैदावार की बात करें तो सामान्य हालात में खेती करने पर इसकी औसत पैदावार साढ़े चार से पांच टन प्रति हेक्टेयर तक पा सकते हैं। यह अधिक उपज देने वाली किस्म है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में कुल 27, 895 हेक्टेयर क्षेत्र में मक्के की खेती की जाती है। अकेले देहरादून में कुल 9,115 हेक्टेयर में मक्के की खेती की जाती है। इस तरह से राज्य में कुल 33 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि में मक्के की खेती की जाती है।
भारत में मक्का की खेती खरीफ के सीजन में की जाती है। इसमें लगभग 45 फीसदी क्षेत्रफल पहाड़ी क्षेत्र में पड़ता है। राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में मक्के की खेती को बढ़ावा देने और मक्का के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा में मक्के की कई हाइब्रीड किस्में विकसित की गई हैं।
मक्का की नई किस्म यह बॉयोफोर्टीफाइड मक्का है। इसके बीज में ट्राइप्टोफान 0.072 प्रतिशत, लाइजिन 0.297 प्रतिशत, प्रो विटामिन ए के साथ-साथ फाइटेट भी होता है। इसलिए इसका सेवन करना भी फायदेमंद माना गया है। मक्के की इस खास किस्म की खेती करके किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।