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मणिपुर में संघर्ष का विस्तार निर्णायक बदलाव की मांग कर रहा है

मणिपुर में संघर्ष का विस्तार निर्णायक बदलाव की मांग कर रहा है

मणिपुर में जातीय संघर्ष को भड़के एक साल से ज्यादा हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप 221 मौतें हो चुकी हैं और तकरीबन 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं, लेकिन अब भी राज्य में कुछ न कुछ भयावह घटित होना जारी है। यह संघर्ष जिरीबाम जैसे अब तक शांत रहे जिलों में फैल गया है, साथ ही इंफाल घाटी और दूसरे इलाकों में जबरन उगाही व अपहरण की घटनाओं में वृद्धि देखी गयी है। घाटी और पहाड़ी इलाकों दोनों में, पुलिस से लूटे गये हथियारों से लैस सशस्त्र मिलिशिया (नागरिक सेनाओं) में वृद्धि ने यह स्थिति पैदा होने में भूमिका निभायी है। पिछले साल से, केंद्र सरकार ने राज्य में संविधान के अनुच्छेद 355 के प्रावधानों को अघोषित रूप से लागू करके एक अनिश्चित किस्म की शांति बनाये रखने की कोशिश की है।पिछले साल से, केंद्र सरकार ने राज्य में संविधान के अनुच्छेद 355 के प्रावधानों को अघोषित रूप से लागू करके एक अनिश्चित किस्म की शांति बनाये रखने की कोशिश की है। ऐसा करते हुए उसी राजनीतिक नेतृत्व को बरकरार रखा गया है, ताकि भारतीय जनता पार्टी से आने वाले मुख्यमंत्री को सत्ता की आड़ मुहैया करायी जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघर्ष पर मानवीय विराम के लिए कोशिश करने या शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करने में बमुश्किल कोई भागीदारी की है, जबकि गृह मंत्री नियमित रूप से सुरक्षा ब्रीफिंग बुलाते हैं, पर शायद ही कुछ हासिल होता है। बहुत सारे सुरक्षा और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ हुई ताजा बैठक में, मुख्यमंत्री आमंत्रित नहीं थे।केंद्र सरकार के अनिर्णायक ढुलमुलपन, और अपने नेतृत्व के जातीय पूर्वाग्रहों से ऊपर उठने में राज्य सरकार की असमर्थता ने यह सुनिश्चित किया है कि मणिपुर संघर्ष धीमी गति से चलता रहे। जबकि, राज्य के मतदाता इस स्थिति पर पहले ही कड़ा संदेश दे चुके हैं। आम चुनाव में, खासकर घाटी में, मिलिशिया द्वारा वोटरों को रोकने के लिए खुलेआम डराये जाने के बावजूद, विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने भीतरी और बाहरी मणिपुर निर्वाचन क्षेत्रों में निर्णायक जीत हासिल की।यथास्थिति बनाये रखने से संघर्ष के समाधान में शायद ही कोई मदद मिल रही है और यह सिर्फ जातीय विभाजन बढ़ा रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों को मणिपुर के लोगों की बदलाव की मांग पर ध्यान देना चाहिए। नेतृत्व में बदलाव अब अपरिहार्य है। यह सरकार के कामकाज के प्रभारी के स्तर पर होना चाहिए, महज कुर्सियों को इधर-उधर करना पर्याप्त नहीं होगा।

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