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नाबार्ड : बंगाल के किसान, पंजाब की अपेक्षा प्रति माह तीन गुना कम कमाते हैं

नेशनल बैंक फार एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) द्वारा किसान कल्याण : भारत के राज्यों में एक विश्लेषण शीर्षक वाली एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि बंगाल का कृषि क्षेत्र दो महत्वपूर्ण मामलों में अन्य राज्यों से पिछड़ा हुआ है । पहला क्षेत्र पूरी तरह से खेती पर निर्भर एक परिवार की औसत मासिक आय का है। नाबार्ड की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे परिवार की खेती से औसत वार्षिक आय 92,072 रुपये है यानी औसत मासिक आय 7,573 रुपये है। इस मामले में बंगाल से केवल छह अन्य राज्य आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश पीछे हैं। 23,133 रुपये के औसत मासिक आय आंकड़े के साथ पंजाब सभी राज्यों में अव्वल है, इसके बाद हरियाणा 18,496 रुपये और केरल 16,927 रुपये है। रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब की अपेक्षा बंगाल के किसान प्रति माह तीन गुना कम कमाते हैं।

नाबार्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि केरल, जहां कृषि परिवार की प्रति माह की औसत मासिक आय 16,927 रुपये है। यह आंकड़ा सबसे अधिक है, गैर-कृषि स्रोतों से प्रति परिवार औसत मासिक आय 14,863 रुपये है। पंजाब के मामले में, जहां कृषि परिवार की औसत मासिक आय का आंकड़ा 23,133 रुपये है, प्रति परिवार गैर-कृषि आय का औसत आंकड़ा भी 10,935 रुपये है। बंगाल के मामले में यह आंकड़ा मुश्किल से 6,383 रुपये है।

रिपोर्ट में बताया गया कि दूसरा क्षेत्र राज्य में प्रति हेक्टेयर कृषि ऋण की मात्रा है। इस मामले में सभी राज्यों में बंगाल का स्थान 15वां है। कृषि ऋण प्रति हेक्टेयर भूमि यहां मात्र 55,000 रुपये है, जो प्रति एकड़ ऋण में बदलने पर 22,000 रुपये है। केरल 3,68,000 रुपये प्रति हेक्टेयर कृषि ऋण के साथ देश में अव्वल है, जिसे एकड़ में परिवर्तित करने पर 1,47,200 रुपये आता है।

राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व ने रिपोर्ट की प्रामाणिकता पर संदेह व्यक्त किया है। राज्य के कृषि मंत्री शोभनदेव चट्टोपाध्याय के अनुसार, उन्होंने अभी तक विस्तार से रिपोर्ट का अध्ययन नहीं किया है, लेकिन उन्हें इसके निष्कर्ष पर संदेह है। उन्होंने कहा, राज्य सरकार के रिकार्ड के अनुसार, 2011 में राज्य में तृणमूल के सत्ता में आने के बाद से एक किसान परिवार की औसत वार्षिक आय में तीन गुना वृद्धि हुई है। 2018 में इस गिनती पर वार्षिक आंकड़ा लगभग 3,00,000 रुपये था। महामारी के कारण पिछले दो वर्षों में कुछ गिरावट आ सकती है, लेकिन स्थिति इतनी भयावह नहीं हो सकती।

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