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प. बंगाल : जलवायु परिवर्तन से बदल रहा है दार्जिलिंग की चाय का स्वाद

दार्जिलिंग की विश्वप्रसिद्ध चाय जलवायु परिवर्तन के कारण अपना जायका खोती जा रही है और लाखों लोगों की जीविका से जुड़े उद्योग का जोखिम भी बढ़ गया है। दार्जिलिंग की चाय का अनोखे स्वाद में हिमालयीन वातावरण, धूप, बारिश, धुंध और मिट्टी की अम्लता ही उसके स्वाद के सही संतुलन का कारण माना जाता है।

हाथ से चाय बागान में पत्तियां तोड़ी जाती हैं। यही कारण है विश्व भर में भारतीय शैम्पेन का दर्जा पाई दार्जिलिंग चाय एक सदी से भी अधिक समय से दुनिया भर के उपभोक्ताओं के बीच पसंदीदा बनी हुई है।

टी बोर्ड ऑफ इंडिया की वेबसाइट में जिक्र किया गया है कि दार्जिलिंग चाय दुनिया में कहीं और उगाई या निर्मित नहीं की जा सकती है। दार्जिलिंग चाय अपने चमकीले धात्विक रंग के साथ वर्ष 2004 में भौगोलिक संकेत (जीआई) ट्रेडमार्क से सम्मानित होने वाला देश का पहला उत्पाद था। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी योग्यताओं के बावजूद दार्जिलिंग की चाय का उत्पादन, घरेलू व अंतरराष्ट्रीय मांग भी गिर रही है।

दार्जिलिंग-इंडियन टी एसोसिएशन (डीआईटीए) के प्रधान सलाहकार संदीप मुखर्जी ने कहा पहाड़, डुआर्स व तलहटी इलाकों का भूजल स्तर नीचे चला गया है। अब चाय का मौसम सूखे से शुरू होता है।

भारतीय चाय निर्यातक संघ (आईटीईए) के अध्यक्ष अंशुमन कनोरिया के मुताबिक हर साल सर्दियों में बारिश की कमी होती है। इससे पहली फ्लश का उत्पादन प्रभावित होता है। इसके बाद अप्रेल मई, जून मे बेमौसम बारिश से दूसरे फ्लश की गुणवत्ता प्रभापित होती है।

 

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