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पश्चिम बंगाल के सिंगूर में फिर आंदोलन की मशाल जलाने की तैयारी में जुटे किसान
पश्चिम बंगाल के सिंगूर में फिर आंदोलन की मशाल जलाने की तैयारी में जुटे किसान

पश्चिम बंगाल के सिंगूर में फिर आंदोलन की मशाल जलाने की तैयारी में जुटे किसान

सिंगूर की बंजर जमीन पर टाटा अपना छोटी कार बनाने के लिए जमीन लेना चाहता था। करीब 18 साल पहले पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट दलों की सरकार के खिलाफ किसानों ने ज़ोरदार आंदोलन किया। किसानों के नेता के नाते ममता बनर्जी ने टीएमसी का परचम लहराया। बाद में ममता बनर्जी ही कम्युनिस्ट पार्टी गठबन्धन की जगह टीएमसी की मुख्यमंत्री बनीं। अब तक न सिंगूर की जमीन को न खेती लायक बनाया गया और न कोई रोजगार देने वाले उद्योग की स्थापना हुई। इसी लिए किसानों ने फिर आंदोलन की ठानी है।

किसानों ने फिर से कमर कस ली है लेकिन, इस बार का आंदोलन 18 वर्ष पहले सिंगुर भूमि आंदोलन का नेतृत्व देने वाली तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की सरकार के खिलाफ है। किसानों ने आंदोलन के मंच के रूप में बंजर भूमि पुनव्र्यवहार समिति का गठन कर लिया है। किसानों की शिकायत है कि 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने ममता सरकार को टाटा मोटर्स से ली गई जमीन को कृषि योग्य बनाकर किसानों को लौटाने का आदेश दिया था लेकिन, आठ साल बीत जाने के बाद भी टाटा मोटर्स की ओर से लौटाई गई सिंगुर की 650 से 700 एकड़ जमीन बंजर पड़ी है। नतीजा वे अपनी आजीविकापार्जन के लिए खेती नहीं कर पा रहे हैं। किसानों ने मांग की है कि न या तो राज्य सरकार बंजर जमीन को खेती योग्य बनाए या नहीं तो फिर उस भू-खंड पर उद्योग लगवाए। कमेटी जल्द ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भेजने जा रही है।

समिति के बैनर तले एकजुट हुए किसानों का नेतृत्व अपनी पार्टी से नाराज स्थानीय तृणमूल नेता ही दे रहे हैं। इनमें दूधकुमार धारा शामिल हैं, जो लगभग दो दशक पहले सिंगुर ‘कृषि जमीं रक्षा समिति’ के नेताओं में से एक थे। 2011 में राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद धारा तृणमूल पंचायत समिति के अध्यक्ष थे लेकिन, पिछली बार पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। दूधकुमार ने दावा किया कि बंजर भूमि को खेती योग्य बनाया जाना चाहिए और नहीं तो उस जमीन पर उद्योग तो होगा ही। मुख्यमंत्री इसकी व्यवस्था करें। ‌ आंदोलनकारियों का कहना है कि किसान पूरा सहयोग करेंगे। हम जल्द मुख्यमंत्री को इस बारे में ज्ञापन देने वाले है। अगर सरकार हमारी मांग नहीं मानी तो हम समिति के बैनर तले 30 अगस्त से सिंगूर में धरना शुरू करेंगे। समस्या के समाधान के लिए वे पहले भी स्थानीय प्रशासन से संपर्क कर चुके हैं लेकिन, कोई नतीजा नहीं निकला। ‌
राज्य के कृषि विपणन मंत्री और सिंगूर से विधायक बेचाराम मन्ना ने कहा कि विरोध करना लोगों का अधिकार है लेकिन, इस आंदोलन का कोई औचित्य नहीं है। सिंगुर में लगभग 91 प्रतिशत भूमि खेती योग्य हो गई है। जिन लोगों ने सडक़ किनारे पेट्रोल पंप के लिए जमीन खरीदी, वे किसान नहीं हैं। वे खेती भी नहीं कर रहे हैं। आंदोलन की बात करने वाले वे लोग हैं, जिन्होंने दलाली करके सिंगुर की जमीनें खरीदी हैं। इसके अलावा जिन लोगों ने ममता बनर्जी के नेतृत्व में सिंगूर आंदोलन का नेतृत्व किया था, वे इस आंदोलन में नहीं हैं।
आंदोलन ने हिला दी थी वाममोर्चा सरकार की नींव
पूर्व वाममोर्चा सरकार ने टाटा मोटर्स की नैनो कार परियोजना के लिए सिंगूर में किसानों से 1000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। जबरन जमीन अधिग्रहण करने का आरोप लगाते हुए अनिच्छुक किसानों ने आंदोलन शुरू किया, जिनकी लगभग 300 एकड़ जमीन थीं। किसानों ने आंदोलन के लिए सिंगूर कृषि भूमि रक्षा समिति का गठन किया। तत्कालीन विपक्ष की नेता ममता बनर्जी ने आंदोलन का नेतृत्व दिया। आंदोलन ने वामपंथी सरकार की नींव हिला दी थी।

गौरतलब है कि करीब 18 साल पहले पूर्व वाममोर्चा सरकार ने टाटा मोटर्स की नैनो कार परियोजना के लिए सिंगूर में किसानों से 1000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। जबरन जमीन अधिग्रहण करने का आरोप लगाते हुए अनिच्छुक किसानों ने आंदोलन शुरू किया, जिनकी लगभग 300 एकड़ जमीन थीं। किसानों ने आंदोलन के लिए सिंगूर कृषि भूमि रक्षा समिति का गठन किया। तत्कालीन विपक्ष की नेता ममता बनर्जी ने आंदोलन का नेतृत्व दिया। आंदोलन ने वामपंथी सरकार की नींव हिला दी थी।

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