देश के विभिन्न हिस्सों में पानी के संकट और लगातार बदलती आबोहवा के मद्देनजर सरकारों ने चावल की बजाय मक्का की पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया है। मक्का का रकबा बढ़ा है। यह कम पानी में तैयार होने वाली फसल है।
देश में मक्के से एथेनॉल का उत्पादन बढ़ रहा है। जिसके कारण मक्के का इस्तेमाल भी बढ़ रहा है. इसके लिए सरकार ने प्लान बनाया है। भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान को केंद्र सरकार ने इसकी जानकारी दी।
वरिष्ठ मक्का वैज्ञानिक डॉ. एस एल जाट ने सरकार की इस योजना के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नयी योजनाओं को शुरू किया जा रहा है। जिसमें मक्के की कई किस्मों की बुआई की जाएगी।
भारत में मक्के के सामान्यत: 4 प्रकार होते हैं। मक्के की सभी किस्मों में अलग-अलग खास गुण पाए जाते हैं। ये है मक्के के प्रकार
फ्लिंट कॉर्न – इस मक्के को उष्ण एवं उपोष्ण के नाम से भी जाना जाता है, यह कई रंगों में उपलब्ध रहता है। इस मक्के का बाहर का हिस्सा कठोर रहता है। इसकी पहचान सफ़ेद और लाल रंग के दानों के रूप में होती है। इसका उत्पादन ज्यादातर मध्य और दक्षिण अमेरिका में किया जाता है। अमेरिका में इसका इस्तेमाल खाद्य के साथ ही सजावट के लिए भी किया जाता है।
डेंट कॉर्न – इसे फील्ड कॉर्न के नाम से भी जाना जाता है। इसका उत्पादन दाने के लिए किया जाता है। सबसे ज्यादा इसका उत्पादन अमेरिका में किया जाता है। फील्ड कॉर्न का सबसे बड़ा उत्पादक अमेरिका है, जिसका इस्तेमाल खाद्य उत्पादों के साथ ही पशु आहार के लिए भी किया जाता है।
पॉपकॉर्न – मक्के की इस किस्म का आकार, नमी की मात्रा और स्टार्च का स्तर अलग-अलग होता है। ये मक्के बाहर से कठोर और अंदर से नरम स्टार्च वाला होता है। स्नैक्स के रूप में इस मक्के का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
फ्लिंट कॉर्न – इस मक्के को उष्ण एवं उपोष्ण के नाम से भी जाना जाता है। यह कई रंगों में उपलब्ध रहता है। इस मक्के का बाहर का हिस्सा कठोर रहता है। इसकी पहचान सफ़ेद और लाल रंग के दानों के रूप में होती है। इसका उत्पादन ज्यादातर मध्य और दक्षिण अमेरिका में किया जाता है। अमेरिका में इसका इस्तेमाल खाद्य के साथ ही सजावट के लिए भी किया जाता है।