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Tractor spraying young corn with pesticides

कृषि उपकरणों पर पहले टैक्स लगाने, फिर सब्सिडी देने की नीति गलतः सोमपाल शास्त्री

पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री ने कृषि संबंधी नीतियां बनाने में किसानों को आगे आने का सुझाव दिया। नीतिगत खामियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मंडी समिति की त्रुटियां दूर की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों को सॉइल कार्ड तो दे देती है लेकिन उस से क्या होगा, किसानों को तो समाधान चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे किसानों के पास उपज को अपने पास रखने की क्षमता नहीं होती है। जब उनकी फसल आती है तभी उसे बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। वे अपनी उपज के बदले अधिक कीमत मांगने की स्थिति में नहीं होते हैं|

सरकार पहले कृषि उपकरणों पर टैक्स लगाती है और फिर उन्हें खरीदने वाले किसानों को सब्सिडी देती है। इससे टैक्स लेते और सब्सिडी देते दोनों समय भ्रष्टाचार होता है। अगर सरकार कृषि उपकरणों पर टैक्स हटा दे तो उनके दाम कम हो जाएंगे और सब्सिडी देने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। जाने-माने कृषि अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री ने यह सुझाव दिया है।

उन्होंने कहा कि देश के 70 फ़ीसदी नेता किसान पृष्ठभूमि के हैं। फिर भी वे किसानों के हित में काम नहीं करते। उन्हें खेती किसानी की समस्याओं के बारे में जानकारी ही नहीं होती है। अधिकारी जो फाइल लेकर आ जाते हैं, वे उस पर हस्ताक्षर कर देते हैं। वे यह नहीं सोचते कि उस पर अमल हो सकता है या नहीं। उन्होंने कहा कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान 15 से 16 फ़ीसदी बताया जाता है लेकिन यह अनुपात कृषि उपज की कम कीमतों के कारण है। अगर उपज की सही कीमत हो तो जीडीपी में कृषि का योगदान 30 फ़ीसदी से कम नहीं होगा।

उन्होंने कहा कि हमारे किसानों के पास उपज को अपने पास रखने की क्षमता नहीं होती है। जब उनकी फसल आती है तभी उसे बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। वे अपनी उपज के बदले अधिक कीमत मांगने की स्थिति में नहीं होते। उन्होंने कहा कि सभी देशों में सरकारें किसानों को प्रश्रय देती हैं। स्विट्जरलैंड का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहां हर किसान को प्रति हेक्टेयर लगभग ढाई लाख रुपए की मदद हर साल मिलती है। लेकिन भारत में किसानों को मदद पर सवाल उठाए जाते हैं। सरकार 23 फसलों की एमएसपी घोषित करती है लेकिन किसानों को वास्तव में दो या तीन फसलों का एमएसपी ही मिलता है।

पूर्व कृषि मंत्री ने किसानों को मिलने वाली कीमत और उपभोक्ताओं से ली जाने वाली कीमत में अंतर पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि केन्या, कनाडा जैसे देशों से दालों का आयात कंपनियां जिस कीमत पर करती हैं उपभोक्ताओं को उससे कई गुना अधिक कीमत पर बेचती हैं। इसलिए उन्होंने कृषि संबंधी नीतियां बनाने में किसानों को आगे आने का सुझाव दिया। नीतिगत खामियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मंडी समिति की त्रुटियां दूर की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों को सॉइल कार्ड तो दे देती है लेकिन उस से क्या होगा, किसानों को तो समाधान चाहिए।

उन्होंने कहा कि आज श्रीलंका और यूक्रेन में पैदा हुए संकट से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि हमें पूरा खाद्यान्न खुद उगाना है। आज देश में 14.4 करोड़ हेक्टेयर में खेती होती है। बहुत हुआ तो 3.5 करोड़ हेक्टेयर में और खेती की जा सकती है। दूसरी तरफ आबादी का बढ़ता दबाव है इसलिए हमें उत्पादकता बढ़ाने के उपाय करने होंगे।

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