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उत्तराखण्ड : जंगलों में आग लगने की बढ़ती घटनाओं से बेचैन हैं पहाड़ के गाँव

इस साल मार्च आते ही जिस तरह से अचानक मौसम बदला और न्यूनतम तापमान पिछले वर्षों के मुकाबले ज्यादा बढ़ गया, उसने आने वाले दिनों में राज्य के जंगलों को आग से बचाने की बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

वन विभाग के मुताबिक्र चालू सीजन में आग लगने की पहली घटना 8 मार्च 2022 को अल्मोड़ा में हुई थी। उसके बाद से 14 मार्च दोपहर तक राज्य में 20 घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं, जिनमें 24.5 हेक्टेअर जंगल का क्षेत्र प्रभावित हुआ है। आने वाले दिनों में राज्य में मौसम शुष्क रहने की संभावना है। ऐसी स्थिति में हालात बिगड़ने की पूरी आशंका बनी हुई है।

पिछली बार सर्दियों के मौसम में उत्तराखंड के जंगल लगातार जलते रहे थे। 15 अक्टूबर, 2020 को शुरू हुआ आग लगने के सिलसिला फरवरी और मार्च में हुई मामूली बारिश से ज्यादा दिन थम नहीं पाया।

मार्च, 2021 के अंतिम दिनों में आग लगने का सिलसिला तेज हुआ और अप्रैल तक पहुंचते-पहुंचते जंगलों में आग की 1000 से अधिक घटनाएं हो गई। हालांकि आग लगने का सिलसिला पूरी गर्मियों में चलता रहा, लेकिन सबसे ज्यादा आग अप्रैल के पहले हफ्ते में लगी।

पिछले वर्ष राज्य में फरवरी में करीब 25 मिमी और मार्च में 10 मिमी बारिश हुई थी। 10 मार्च, 2021 को बारिश होने के कारण कुछ दिन के लिए जंगलों में आग लगने की घटनाएं कम हो गई थी।

इस बार हालांकि जनवरी और फरवरी में सामान्य से बहुत ज्यादा बारिश हुई। लेकिन, अब स्थितियां लगातार चुनौतीपूर्ण बनती जा रही हैं। हाल के दिनों में आखिरी बारिश 26 फरवरी को दर्ज की गई थी, जो 10.8 मिमी थी।

मौसम विभाग के अनुसार जनवरी और फरवरी के महीने में राज्य में 162.6 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य से 575 प्रतिशत ज्यादा थी। इस बारिश के बाद माना जा रहा था कि इस बार जंगलों को आग से ज्यादा नुकसान नहीं होगा, लेकिन जिस तरह से मार्च के महीने में अचानक तापमान पिछले कुछ सालों की तुलना में तेजी से बढ़ा है, उससे जंगलों को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।

मार्च के महीने में तापमान की स्थिति पर नजर डालें तो पिछले 10 वर्षों में यह दूसरा मौका है, जब राज्य की राजधानी देहरादून में मार्च के पहले पखवाड़े में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा दर्ज किया गया है। इस बार 1 मार्च को न्यूनतम तापमान 10.0 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।

उसके बाद लगातार इसमें बढ़ोत्तरी होती रही और 13 मार्च को न्यूनतम तापमान 14.6 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया है। इससे पहले 2018 में मार्च के पहले पखवाड़े में सबसे कम न्यूनतम तापमान 2018 में 10.8 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया था।

मार्च के महीने में अधिकतम तापमान भी इस बार पहले पखवाड़े में ही 31 डिग्री के पास पहुंच चुका है। पिछले 10 वर्षों में मार्च के महीने में सबसे ज्यादा अधिकतम तापमान 36.1 डिग्री सेल्सियस 30 मार्च, 2021 को दर्ज किया गया था।

मार्च आते ही जिस तरह से अचानक मौसम बदला और न्यूनतम तापमान पिछले वर्षों के मुकाबले ज्यादा बढ़ गया, उसने आने वाले दिनों में राज्य के जंगलों को आग से बचाने की बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

वन विभाग के मुताबिक्र चालू सीजन में आग लगने की पहली घटना 8 मार्च 2022 को अल्मोड़ा में हुई थी। उसके बाद से 14 मार्च दोपहर तक राज्य में 20 घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं, जिनमें 24.5 हेक्टेयर जंगल का क्षेत्र प्रभावित हुआ है। आने वाले दिनों में राज्य में मौसम शुष्क रहने की संभावना है। ऐसी स्थिति में हालात बिगड़ने की पूरी आशंका बनी हुई है।

पिछली बार सर्दियों के मौसम में उत्तराखंड के जंगल लगातार जलते रहे थे। 15 अक्टूबर, 2020 को शुरू हुआ आग लगने के सिलसिला फरवरी और मार्च में हुई मामूली बारिश से ज्यादा दिन थम नहीं पाया।

मार्च, 2021 के अंतिम दिनों में आग लगने का सिलसिला तेज हुआ और अप्रैल तक पहुंचते-पहुंचते जंगलों में आग की 1000 से अधिक घटनाएं हो गई। हालांकि आग लगने का सिलसिला पूरी गर्मियों में चलता रहा, लेकिन सबसे ज्यादा आग अप्रैल के पहले हफ्ते में लगी।

इस बार हालांकि जनवरी और फरवरी में सामान्य से बहुत ज्यादा बारिश हुई। लेकिन, अब स्थितियां लगातार चुनौतीपूर्ण बनती जा रही हैं। हाल के दिनों में आखिरी बारिश 26 फरवरी को दर्ज की गई थी, जो 10.8 मिमी थी।

इसके चलते जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं। वन विभाग ने इस सीजन में जंगलों में आग लगने की अब तक राज्यभर में 17 घटनाएं दर्ज की हैं। इनमें 14 घटनाएं रिजर्व फोरेस्ट में और 3 घटनाएं वन पंचायत के जंगलों में हुई हैं। इन घटनाओं में 20.5 हेक्टेअर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है। 48,500 रुपये का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है।

पिछले वर्ष से तुलना करें तो 2021 में मार्च के अंतिम सप्ताह में राज्य में जंगलों की आग की घटनाओं में बढ़ोत्तरी होने लगी थी। मध्य अप्रैल तक जंगलों ने सबसे ज्यादा और सबसे बड़ी आग की घटनाओं का सामना किया। मानसून आने तक राज्य के जंगलों में आग लगने की करीब 1400 घटनाएं हुई थी।

इनमें 3,967 हेक्टेयर जंगल जल गये थे और 1 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ था। जंगलों की आग के कारण पिछले वर्ष 8 लोगों और 22 मवेशियों की भी मौत हो गई थी।

इस बीच वन विभाग ने हर वर्ष की तरह इस बार भी जंगलों को आग से बचाने के लिए हर तरह के प्रयास शुरू करने की बात कही है। इनमें मास्टर कंट्रोल रूम बनाने, क्रू स्टेशन स्थापित करने, वाच टावर व्यवस्थित करने, कंट्रोल बर्निंग और फायर लाइन साफ करने के साथ जंगलों के आसपास के गांवों में लोगों को जागरूक करने जैसे कदम शामिल हैं। लेकिन, वन विभाग की मुख्य समस्या कर्मचारियों की कमी है।

जंगलों में आग बुझाने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार फॉरेस्ट गार्ड और फॉरेस्टर के सैकड़ों पद अब भी खाली हैं। खासकर फॉरेस्ट गार्ड की नियुक्ति में लगातार विभाग की ओर से लापरवाही की जा रही है। राज्य में जरूरत से काफी कम फॉरेस्ट गार्ड के पद स्वीकृत हैं।

स्वीकृत पदों की संख्या करीब 3600 है, लेकिन इनमें से भी कुल 13 सौ फॉरेस्ट गार्ड ही नियुक्त हैं। वन विभाग जंगलों को आग से बचाने के लिए आम नागरिकों पर ही मुख्य रूप से निर्भर है।

गौरतलब है कि जंगलों में आग से आक्सीजन ही कम नहीं होती है, पशु-पंछी व पेड़ों की दुर्लभ नस्ले ख़त्म हो जाती हैं | जंगलों के बीच व किनारे की बसि्तयों का तो अंदाजा लगाना ही मुशि्कल है|

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