देश में केले का उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जाता है| जितना महत्वपूर्ण केला होता है, उनता ही महत्वपूर्ण उसका तना होता है| अगर केले के तने की प्रोसेसिंग की जाए तो उतना ही लाभ होगा, जितना कि केले के फल से| पूरे भारत में 2 करोड़ टन से अधिक केले का उत्पादन होता है| भारत के लगभग सभी राज्यों के किसान केले की खेती करते हैं|
उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में केले की खेती प्रमुख तौर से होती है| केले की खेती में सबसे बड़ी समस्या यह है कि तना को खेत से हटाने के लिए किसानों को काफी मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है| इस समस्या से बचने के लिए केले का मूल्य संवर्धन करना एक अच्छा समाधान माना जा सकता है|
अतिरिक्त आय के लिए केले के तने को पहले दो अलग-अलग हिस्सों में किया जाता है| फिर तने के छिलके को अलग किया जाता है| तने से जब रेशा निकाला जाता है, उसी दौरान सॉलिड वेस्ट भी निकलता है| रेशों को धोकर सुखाया जाता है| वहीं तने से निकले सॉलिड वेस्ट को मशीन के माध्यम से दबाया जाता है, जिससे पानी निकलता है और आखिर में सेंट्रल कोर निकाला जाता है|
तने से प्राकृतिक फाइबर निकलता है, जिसके अलग फायदे हैं| इससे धागा, फैब्रिक्स, थर्मोकोल और उच्च किस्म का पेपर बनाया जाता है| ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जो तना किसानों के लिए परेशानी की एक जड़ हुआ करता था, वह कमाई का एक जरिया बन चुका है| तने से जो पानी निकलता है, उससे आयरन और पौटैशियम की मात्रा ज्यादा रहती है. इससे वैज्ञानिकों ने तरल (लिक्विड) फर्टिलाइजर बनाने की तकनीक विकसित की है|
वहीं तने के सेंट्रल कोर से सब्जी, सलाद, अचार, जैम और जैली जैसी कई चीजें बनाई जाती हैं| केले की खेती कर रहे किसान तने की प्रोसेसिंग कर अधिक से अधिक लाभ कमा सकते हैं| इस काम के लिए किसान कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क कर सकते हैं| जरूरी नहीं कि इस काम को बड़े पैमाने पर ही शुरू किया जाए, किसान कम लागत के साथ ही इसकी शुरुआत कर सकते हैं और अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं|
केले के पौधे के तने यूं ही बेकार हो जाते हैं। जिसका कोई उपयोग नहीं हो पाता है। पर अब बिहार के खगडिय़ा जिले में केले के तने का न सिर्फ उपयोग होगा, बल्कि इससे रोजगार व आय भी हो सकेगी। केले के तने से रेशा निकालकर रेशे से भोज की थाली कटोरी, रस्सी सहित अन्य वस्तुओं का निर्माण हो सकेगा। सरकारी स्तर पर अब इस तने को रोजगार का साधन के रूप में विकसित किए जाने की योजना बनाई गई है।
इलाके के परबत्ता प्रखंड में उदयपुर सेवा संस्थान की महिलाएं केले के तने की रेशे से रस्सी बनाने के साथ इससे बच्चों का झूला, थैला आदि का निर्माण एक दशक से करती रही हैं। परंतु, समुचित प्रोत्साहन नहीं मिल पाने के कारण उनकी यह कला स्व-उपयोग तक ही सिमट कर रह गई।