कानूनों को दरकिनार करते हुए हुए निर्माण की वजह से उत्तर बंगाल में दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और कुरसेओंग की पहाड़ियों के लिए ‘जोशीमठ’ की तरह खतरे की घंटी बन गया है। उत्तरी बंगाल की पहाड़ियों में संभावित जोशीमठ जैसे संकट के पीछे मुख्य कारण बेलगाम रियल एस्टेट का विकास होगा। रियल एस्टेट डेवलपर अक्सर पहाड़ियों में निर्माण की ऊंचाई की मान्य सीमा का उल्लंघन कर रहे हैं।
करशियांग के करमठ गांव के घरों में दरारें मिलीं। लेकिन दरारें क्यों हैं? स्थानीय निवासियों की शिकायत है कि सेवक-रोंगपो रेलवे सुरंग गांव के बहुत करीब बनाई जा रही है। डायनामाइट फोड़कर सुरंग बनाने में खतरा है। आपदा तैयारी विशेषज्ञ दरारों की जांच कर रहे हैं और कह रहे हैं कि अगर हमने अभी ध्यान नहीं दिया तो खतरा आसन्न है।
कार्शियांग के कालीझोरा से पहाड़ की सड़क पर चढ़कर लतापंचर के पर्यटन केंद्र तक पहुंचा जा सकता है। वन ग्राम में कई घरों में दरार डालने का काम शुरू हो गया है। और वह तस्वीर मुझे जोशीमठ की याद दिलाती है। सिर्फ जोशीमठ कहना गलत है, रेलवे टनल बनाते समय जो हश्र कोलकाता के बहू-बाजार का हुआ, वही इस कर्मठ का नहीं होगा? स्थानीय निवासी सुमन राय ने कहा, ‘सुरंग बनने से पहले यह दरार नहीं थी। अब यह नज़र आ रही है। एक अन्य निवासी ने कहा, ‘मैंने अब तक घर में कोई दरार नहीं देखी है। टनल बनने के बाद से ही मैं घर में दरारें देख रहा हूं।’
जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गुपीनाथ भंडारी ने कहा, “हम सावधानी बरत रहे हैं। बाहर से पानी के दबाव को रोकने के उपाय किए गए हैं। लेकिन अगर सड़क ठीक से नहीं बिछाई गई तो जोशीमठ जैसी स्थिति हो सकती है।’
एक तरफ रेलवे सुरंग है तो दूसरी तरफ तीस्ता जलविद्युत परियोजना। इन दोनों के बीच लड़ाई होती है। मानसून के दौरान सिलीगुड़ी से सिक्किम का यह मार्ग कई दिनों तक बंद रहता है। और यहां के लोगों को लगता है कि इस सब में खतरा बढ़ सकता है|
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दार्जिलिंग नगरपालिका इलाके में आबादी का घनत्व 15,554 प्रति वर्ग किलोमीटर है। इस लिहाज से यह दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला पर्वतीय शहर है। लेकिन बावजूद इसके सरकार ने अब तक कोई एहतियाती कदम नहीं उठाए हैं। पहले आने वाले भूकंप और भूस्खलन की तमाम घटनाएं भी प्रशासन और आम लोगों में भावी खतरे के प्रति जागरूकता नहीं पैदा कर सकी हैं।