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हिमाचल प्रदेश : सेब की कीमत पर बिकती है ‘ पैखम थ्रिप्स ‘ नाशपाती

नाशपाती उत्पादन हिमाचल प्रदेश के बागवानों की पसंद बनता जा रहा है। नाशपाती को भी बाजार में सेब के बराबर दाम मिल रहे हैं। बागवानों को इसके उत्पादन में खर्च कम आ रहा है, जबकि मुनाफा अधिक हो रहा है। सेब पर कीटनाशकों और फफूंद नाशकों का खर्च अधिक रहता है, जबकि नाशपाती के बगीचों में अपेक्षाकृत कम व्यय होता है। नाशपाती की खेती हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश और कम सर्दी वाली किस्मों की खेती की जा रही है।

पैखम थ्रंप्स नाशपाती अधिक समय तक टिकी रहती है। यह पांच माह तक कोल्ड स्टोर में सुरक्षित रहती है। गर्म जलवायु वाले इलाकों में भी सफलता से उगाई जा सकती है। कलम करने के तीसरे साल इसमें फल आने लगते हैं।

इस किस्म की नाशपाती लाल रंग की है। यह छह हजार फीट से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में सफल है। इसकी चिलिंग जरूरत अधिक होती है। बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एसपी भरद्वाज कहते हैं कि सेब उत्पादकों ने नाशपाती को वैकल्पिक फसल के रूप में अपनाया है। नाशपाती के बगीचों में ज्यादा खर्चा देखभाल में नहीं करनी पड़ती और बाजार में दाम अच्छे मिलते हैं।

पैखम थ्रंप्स नाशपाती अधिक समय तक टिकी रहती है। यह पांच माह तक कोल्ड स्टोर में सुरक्षित रहती है। गर्म जलवायु वाले इलाकों में भी सफलता से उगाई जा सकती है। कलम करने के तीसरे साल इसमें फल आने लगते हैं। ब्यूरीबोसिक नाशपाती भूरे रंग की होती है। इसमें फल जल्दी आते हैं। यह किस्म पैखम नाशपाती के लिए पोलीनेटर भी है।

डायना ड्यूकोमिक नाशपाती फ्रांस की किस्म है। यह अगस्त के अंत में तैयार होती है। इसका रंग हल्का पीला रहता है। कॉनकार्ड, टेलर गोल्ड, गोल्डन रसलेट,वार्डन सेकल, ग्रीन एंड रेड एंजो और कारमैन प्रमुख किस्में हैं।

नाशपाती की खेती रेतीली दोमट से चिकनी दोमट मिट्टी में की जा सकती है। इसकी पैदावार वहां अच्छी होती है, जो मिट्टी गहरी, बढ़िया निकास वाली, उपजाऊ हो और 2 मीटर गहराई तक कठोर न हो।

नाशपाती के पौधे जनवरी और फरवरी में लगाए जाते हैं। एक साल पुराने पौधों का प्रयोग किया जाता है। जुलाई के आखिरी हफ्ते में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसतन पैदावार 150 किलो प्रति वृक्ष होती है।

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