मैंगोस्टीन एक ऐसा फल है, जो स्वाद में तो मीठा और खट्टा होता है, लेकिन पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यह स्वास्थ्य के लिए इतना फायदेमंद है कि दुनियाभर में इसकी मांग है। इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व, फाइबर और एंटी-ऑक्सीडेंट कई प्रकार से स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। इस फल के सेवन से इम्यूनिटी को तो मजबूती मिलती ही है, साथ ही इसमें कई ऐसे यौगिक मौजूद होते हैं, जो कैंसर, मोटापा और मधुमेह (डायबिटीज) जैसी बीमारियों में काफी लाभदायक हो सकते हैं।
मैंगोस्टीन का सेवन ब्लड शुगर को नियंत्रित कर सकता है। एक अध्ययन के मुताबिक, इसमें पाया जाने वाला रासायनिक यौगिक एक्सथोन ब्लड शुगर के स्तर को संतुलित बनाए रखता है। इसमें फाइबर की भी अच्छी मात्रा पाई जाती है, जो ब्लड शुगर को स्थिर करने के साथ डायबिटीज पर शरीर की नियंत्रण क्षमता को बढ़ाता है।
मैंगोस्टीन, जिसे “फलों की रानी” कहा जाता है, की वैश्विक मांग आसमान छू रही है। दक्षिण पूर्व एशिया से उत्पन्न यह फल अब पश्चिमी बाजारों में एवोकाडो को पछाड़ चुका है। भारत के किसान, विशेषकर केरल, दक्षिणी कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में, इस फल की खेती से करोड़ों कमा रहे हैं, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेहतरीन दाम पा रहा है।
भारत में जहां मैंगोस्टीन का एक किलो ₹500 में बिकता है, वहीं अमेरिका में एक फल की कीमत लगभग ₹500 तक होती है, और एक किलो की कीमत $50 (~₹4,000) तक पहुंच सकती है। इतनी उच्च अंतरराष्ट्रीय मांग को देखते हुए, भारतीय किसान मैंगोस्टीन की खेती के लिए पूरी जमीन साफ कर रहे हैं, जिससे अगले 10 वर्षों में मुनाफे की उम्मीद है।
केरल में 35 साल पुराना मैंगोस्टीन का पेड़ प्रति वर्ष लगभग 350 किलोग्राम फल देता है, जिससे एक दिन में ही ₹1 लाख से अधिक की कमाई होती है। यहां तक कि 100 साल से अधिक पुराने पेड़ भी सालाना लगभग एक टन फल उत्पन्न करते हैं।
इसके अलावा, मैंगोस्टीन की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही, भारत के स्वदेशी फल कोकम को भी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जगह मिलने की संभावना है। कोकम और मैंगोस्टीन आधारित पाउडर, सॉस, और डिप्स जैसे मूल्य-वर्धित उत्पादों का भी वैश्विक बाजारों में एक नया अवसर दिख रहा है।