तापमान के 40 डिग्री के आसपास पहुंच जाने के कारण इस साल लीची के फसल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं| इस साल हालांकि लीची के पेड़ों पर भरपूर मंजर आया है| मार्च में अचानक तापमान में तेजी से वृद्धि होने के कारण उद्यान मालिकों और इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों की चिंता बढ़ने लगी है| उन्हें मंजर झड़ने का डर सताने लगा है|
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने फिलहाल ये सुझाव दिए हैं– चाइना प्रजाति में अभी छिड़काव नहीं करें । शाही किस्म में भी अभी यदि मधुमक्खी का विचरण हो रहा हो तो कुछ दिन रुककर ही छिड़काव करें।
— शाही किस्म के पौधों के थल्लों में हल्की सिचाई करें तथा सूखी घास की मल्च बिछाएं।
– शाही किस्म के पौधों में बोरेक्स ( 20 प्रतिशत) चार ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। बोरेक्स की सही मात्रा का उपयोग करे, अन्यथा नुकसान हो सकता है। — 8-12 वर्ष के पौधों में 350 ग्राम यूरिया एवं 250 ग्राम पोटाश का व्यवहार करें और 15 वर्ष के ऊपर के पौधों में 450-500 ग्राम यूरिया एवं 300 से 350 ग्राम पोटाश का व्यवहार होना चाहिए।
इस बात पर ध्यान रहें कि उर्वरकों का प्रयोग पर्याप्त नमी होने पर ही करें। छत्रक से एक मीटर अंदर 15 सेमी चौड़ी एवं गहरी नाली बनाकर उर्वरक का उपयोग होना चाहिए।
– लीची फलबेधक (बोरर) कीट से बचाव के लिए उचित दवा का घोल बनाकर छिड़काव करें। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फल बड़ी लौंग के आकार के हो जाने के बाद ही दवा का छिड़काव करें।
– मंजर व फल झुलसा एवं अन्य रोगों से बचाव के लिए कीटनाशक के साथ ही कवकनाशी थायोफेनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यूपी दो ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करते चलें। बगीचे में फल लगे या बिना लगे सभी पौधों पर छिड़काव करें।
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने किसानों की सहायता के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं। इसके तहत किसान प्रधान वैज्ञानिक डा. विनोद कुमार को 9162601559, वैज्ञानिक डा. सुनिल कुमार को 8860006741 व वैज्ञानिक डा. एसडी पांडेय को 9835274642 पर फोन कर उचित सलाह ले सकते हैं |