विश्व जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रहा है| जिससे भारत भी अछूता नहीं रह गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण में अनेक प्रकार के परिवर्तन जैसे तापमान में वृद्धि, वर्षा का कम या ज्यादा होना, पवनों की दिशा में परिवर्तन आदि हो रहे हैं, जिसके फलस्वरूप कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है | ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण पर्यावरण में ग्रीन हाउस गैसों जैसे कार्बन डाइ ऑक्साइड , मीथेन , नाइट्रस ऑक्साइड , की मात्रा में वृद्धि है। इसका प्रभाव कृषि क्षेत्र पर भी अब दिखने लगा है |
इसी मुद्दे पर लोकसभा में सांसद उमेश जी. जाधव, प्रताप सिम्हा, कराडी सनगणना अमरप्पा के ने केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर से सवाल पूछा था कि भूमंडलीय तापन के प्रतिकूल प्रभाव के संबंध में कोई रिपोर्ट जारी की है तो इसकी जानकारी दें | क्या भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् ने भी देश के कृषि क्षेत्र पर भूमंडलीय तापन के प्रभाव का आकलन किया है उसकी जानकारी दी जाए ?
केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लोकसभा में दिये गये जवाब के अनुसार भूमंडलीय तापन का असर फसलों के उत्पादन पर पड़ रहा है तथा आने वाले वर्षों में फसलों के उत्पादन पर ओर भी बड़ा असर पड़ने वाला है | अध्ययन के अनुसार अनुकूलन उपायों को न अपनाने के कारण, जलवायु परिवर्तन के अनुमानों में 2050 में वर्षा – सिंचित चावल की पैदावार में 20% और 2080 के परिदृश्य में 47% की कमी होने की संभावना है जबकि, 2050 में सिंचित चावल की पैदावार में 3.5% और 2080 के परिदृश्य में 5% की कमी आएगी |
इसी प्रकार गेहूं की पैदावार में 2050 में 19.3% तक और 2080 के परिद्द्श्य में 40% और खरीफ मक्का की पैदावार में 2050 तथा 2080 के परिदृश्य में 18 से 23% तक की कमी होने की संभावना है | मूंगफली की पैदावार में भी कमी आने की अनुमान है | खरीफ मूंगफली की पैदावार में 2050 के परिदृश्य में 7% वृद्धि होने जबकि 2080 के परिदृश्य में 5% की गिरावट होने की संभावना है | भविष्य की जलवायु–परिस्थितियों से चने की उत्पादकता में वृद्धि के कारण लाभ होने की संभावना है |
कृषि मंत्री ने बताया किमंत्रालय ने बताया कि आलू का उत्पादन भी 2020 तक 2.5 प्रतिशत, 2050 तक 6 प्रतिशत और 2080 तक 11 प्रतिशत कम हो सकता है| हालांकि भविष्य के लिए सोयाबीन को लेकर अच्छे संकेत हैं| कृषि मंत्रालय के मुताबिक सोयाबीन का उत्पादन 2030 से लेकर 2080 तक में आठ से 13 प्रतिशत तक बढ़ सकता है|
इसी तरह पश्चिमी तटीय क्षेत्रों जैसे कि केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में नारियल के उत्पादन में वृद्धि होने की उम्मीद है| जलवायु परिवर्तन से सेब के उत्पादन पर भी काफी बुरा असर पड़ रहा है|
इसी तरह दूध के उत्पादन पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है|
कृषि मंत्रालय ने बताया कि 2020 तक 1.6 मीट्रिक टन और 2050 तक 15 मीट्रिक टन दूध का उत्पादन कम हो सकता है| इस मामले में सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश में हो सकता है. इसके बाद तमिलनाडु, राजस्थान और पश्चिम बंगाल इससे प्रभावित हो सकते हैं|
मंत्रालय ने यह भी बताया कि तापमान बढ़ने की वजह से अंडा और मांस उत्पादन में कमी आती है| जलवायु परिवर्तन की वजह से मिट्टी का कटाव बढ़ सकता है और पानी की उपलब्धता एवं गुणवत्ता को प्रभावित करने का अनुमान है|