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सभी कृषि विश्व विद्यालयो के पाठ्यक्रम में शामिल होगी प्राकृतिक खेती

केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक योजना पर काम कर रही है और कृषि-विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में खेती की इस पारंपरिक पद्धति को शामिल करने पर विचार कर रही है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह जानकारी दी।

सरकार भविष्य में देश के अंदर प्राकृतिक खेती का रकबा भी बढ़ाने की योजना बना रही है| इसी कड़ी में इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च ने एक अहम फैसला लिया है| प्राकृतिक खेती को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने जा रही है| जिसके तहत देशभर के कृषि विश्वविद्यालय में संचालित स्नातक व परास्नातक पाठ्यक्रमों में प्राकृतिक खेती विषय के तौर पर पढ़ाया जाएगा| इससे प्राकृतिक खेती को लेकर वैज्ञानिक नजरिया विकसित होगा और साथ ही वैज्ञानिक आधार मिलेगा|

उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की आय बढ़ाने और कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्राकृतिक और जैविक खेती सहित खेती के विभिन्न तरीकों को प्रोत्साहित करना चाहती है।

श्री तोमर ने वैज्ञानिकों से खेती के पारंपरिक तरीकों का अधिकतम लाभ उठाने के लिए अपनी शोध जानकारियां उपलब्ध कराने का भी आग्रह किया।

कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों के निदेशकों के वार्षिक सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा, ‘‘भारत को आत्मनिर्भर बनाने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए खेती के विभिन्न तरीकों को बढ़ावा देना जरूरी है।’’

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती एक पारंपरिक पद्धति है जो देश की आजादी से पहले मौजूद थी। हालांकि, देश को उस समय की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हरित क्रांति के दौरान रासायनिक उर्वरक आधारित खेती को अपनाना पड़ा।

मंत्री ने कहा कि रासायनिक खेती एक चरम बिंदु पर पहुंच गई है और खेती के विभिन्न तरीकों को आजमाने की जरूरत है, जिसमें पारंपरिक खेती भी शामिल हैं।

इस संदर्भ में तोमर ने कहा, ‘‘हम जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। हम प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक योजना पर काम कर रहे हैं।’’

कृषि मंत्री ने कहा कि कुछ वैज्ञानिक कह सकते हैं कि प्राकृतिक खेती एक आदिम तरीका है लेकिन उन्हें पंजाब जैसे कुछ राज्यों में रासायनिक खेती से हुए नुकसान की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को पारंपरिक खेती के तरीकों पर शोध करना चाहिए और इसे कृषि-विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आईसीएआर ने इस मामले पर गौर करने के लिए एक समिति का गठन किया है। श्री तोमर ने यह भी कहा कि भारत के लिए कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना जरूरी है क्योंकि मौजूदा समय में युद्ध सिर्फ गोलियों से नहीं लड़ा जाता है।

उन्होंने कहा कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र के योगदान को बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र की तुलना में कृषि से संबद्ध क्षेत्रों का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में अधिक योगदान है।

उन्होंने कहा कि पहले उत्पादन केंद्रित नीतियों का पालन किया जाता था लेकिन अब किसानों की आय में सुधार और उत्पादन की लागत को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। उन्होंने इस क्षेत्र में क्रांति का आह्वान किया। मंत्री ने कहा कि आईसीएआर नई शिक्षा नीति लागू कर रहा है और आने वाले वर्षों में इसके परिणाम देखने को मिलेंगे।

कृषि स्टार्टअप के बारे में तोमर ने कहा कि कई मॉडल बहुत प्रयासों के बाद स्थापित किए गए हैं, लेकिन उन्हें सार्वजनिक लाभ के लिए व्यापक रूप से लागू नहीं किया गया है।

इस अवसर पर बोलते हुए मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा कि कृषि शिक्षा पाठ्यक्रम को उस गति के अनुरूप अद्यतन किया जाना चाहिए जिस गति से कृषि क्षेत्र बदल रहा है।

आईसीएआर के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्र ने कहा कि नई शिक्षा नीति कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों (वीसी) से सहमति लेने के बाद लागू की जा रही है।

उन्होंने कहा कि कुलपतियों ने यूजी और पीजी पाठ्यक्रमों में सालाना 10 प्रतिशत और आईसीएआर कोटा क्रमश: 15 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत और 25 से 30 प्रतिशत करने पर सहमति व्यक्त की है।

महापात्र ने कहा कि निजी संस्थानों में प्रवेश में आईसीएआर की कोई भूमिका नहीं है, लेकिन वे सीटों के आवंटन के लिए आईसीएआर की सामान्य प्रवेश परीक्षा का उपयोग कर सकते हैं।

कार्यक्रम में कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी और शोभा खरंदलाजे भी मौजूद थीं।

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