tag manger - आम की कम पैदावार ने पाकिस्तानी आम अवाम की मिठास कम कर दी – KhalihanNews
Breaking News

आम की कम पैदावार ने पाकिस्तानी आम अवाम की मिठास कम कर दी

पाकिस्तान के लिए आम सिर्फ स्वाद की चीज नहीं, कमाई का एक बड़ा ज़रिया है. लेकिन बेतहाशा गर्मी और उल्टे-पुल्टे मौसम से आम की पैदावार बहुत कम हुई है। बागवान परेशान हैं और जलवायु परिवर्तन को दोष दे रहे हैं ।

भारत की ही तरह पाकिस्तान में भी आम सिर्फ एक फल नहीं है. इससे लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं. लोगों के लिए आम राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की चीज भी है और आमदनी का जरिया भी. पाकिस्तान में आज भी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब एक चौथाई हिस्सा खेती से आता है. वह दुनिया का चौथा बड़ा आम उत्पादक देश भी है.

यहां आम की करीब 20 प्रमुख किस्में उगाई जाती हैं। संतरे के बाद यह सबसे ज्यादा उगाया जाने वाला फल है। हालांकि, इस बार आम की पैदावार बहुत अच्छी नहीं है। कीड़ों और मौसम के चरम रूप ने इस बार काफी फसल बर्बाद कर दी है। किसान इसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार मानते हैं।

करीब 60 साल के किसान मुहम्मद यूसुफ का गांव टांडो अल्लाहयार, कराची से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर है. उनकी आधी जिंदगी आम उगाते हुए बीती है. चिलचिलाती धूप से बचने के लिए सिर पर सफेद और नारंगी गमछा लपेटे यूसुफ बदमिजाज मौसम पर तकलीफ जताते हैं। समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए वह कहते हैं, “सही समय पर मंजर नहीं आई, कई तो बस मुरझा ही गए. जो बढ़ना शुरू हुए, उनमें ब्लैक हॉपर कीड़ा लग गया.” यूसुफ बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन उनके गांव पर कहर बनकर टूटा है.

इस बार सर्दी का मौसम भी असामान्य रूप से लंबा खिंचा. फिर अप्रैल में जमकर बारिश हुई. यह पाकिस्तान में कई दशकों का सबसे गीला अप्रैल था. अब पड़ोसी भारत की तरह यहां भी भीषण गर्मी पड़ रही है. तापमान 52 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. टांडो अल्लाहयार से दक्षिण की ओर बसे टांडो गुलाम अली में भी ऐसा ही हाल है. यहां रहने वाले 32 साल के किसान अरसलान बताते हैं कि पैदावार खराब हुई
पाकिस्तान में इस बार आम की पैदावार बहुत अच्छी नहीं है. कीड़ों और मौसम के चरम रूप ने इस बार काफी फसल बर्बाद कर दी है।
पहले कभी नहीं लगे इतने कीड़े!
अरसलान के पास 900 एकड़ का एक आम का बाग है। इसी हफ्ते आम तोड़ने का काम शुरू हुआ है. वह बताते हैं कि आम ऊपर से तो पीले हो गए हैं, लेकिन अंदर से या तो कच्चे हैं या बहुत ज्यादा पक गए हैं। वह बताते हैं, “पैदावार में 15 से 20 फीसदी का नुकसान हुआ है। अभी तो आम तोड़ने का काम बस शुरू ही हुआ है। पक्के तौर पर ये नुकसान और बढ़ेगा.” अरसलान आशंका जताते हैं कि कम पैदावार के कारण आम का निर्यात भी कम कर दिया जाएगा।

जिया उल हक भी आम उगाते और विदेश भेजते हैं। वह बताते हैं कि इस साल आम पर जितने कीड़े लगे, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। जिया कहते हैं, “पहले कभी हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ।”

कीड़ों में बढ़ोत्तरी और उनके फैलने के कारण कीटनाशकों पर खर्च में विस्फोटक वृद्धि हुई है। सिंध प्रांत के कई किसानों ने एएफपी से इसकी पुष्टि की है। सिंध के अलावा कृषि प्रधान पंजाब में भी किसान यही बता रहे हैं। उनका कहना है कि अब हर साल छह से सात बार रसायनों का छिड़काव करना पड़ता है। पहले बस तीन बार तक छिड़काव की जरूरत पड़ती थी। सिंध के किसानों का कहना है कि वे 2022 से ही संघर्ष कर रहे हैं, जब पहले प्रचंड गर्मी पड़ी और फिर भयंकर बाढ़ आई. वहीं, पंजाब के किसान बताते हैं कि पैदावार में लगातार भारी गिरावट आ रही है।
सिंध प्रांत के किसान बताते हैं कि आम ऊपर से तो पीले हो गए हैं, लेकिन अंदर से या तो कच्चे हैं या बहुत ज्यादा पक गए हैं।
वहीद अहमद, पाकिस्तान फेडरेशन ऑफ फ्रूट एंड वेजिटेबल एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रमुख है।. वह बताते हैं, “पंजाब में पैदावार का नुकसान 35 से 50 फीसदी और सिंध में 15 से 20 प्रतिशत पर पहुंच गया है।” स्थानीय मीडिया से बात करते हुए वहीद ने बताया कि पिछले साल पाकिस्तान ने 125,000 टन आम निर्यात करने की योजना बनाई थी, लेकिन वह केवल एक लाख टन का ही एक्सपोर्ट कर पाया।

आम की कम पैदावार के कारण ना केवल उत्पादकों और किसानों की आमदनी कम होगी, बल्कि पहले से ही बदहाल देश की अर्थव्यवस्था पर भी खासा असर होगा। ऐसे में टांडो गुलाम अली गांव के ही 30 वर्षीय मजदूर माशूक अली चाहते हैं कि सरकार किसानों की मदद करे। वह कहते हैं, “बाग के मालिक इस साल कम कमाएंगे. अगर उन्होंने हमें पिछले साल जितना भी पैसा दिया, तब भी महंगाई के कारण हम अपने परिवार का पेट नहीं भर पाएंगे।” शायद इसीलिए माशूक अली की पत्नी ने कपड़े बेचने का काम शुरू किया है, ताकि घर में थोड़े और पैसे आए। (साभार : डीडब्ल्यू )

About admin

Check Also

कम समय और कम पानी से तैयार होने वाली धान की ज्यादा पैदावार वाली किस्में

सिंचाई के लिए पानी का संकट ज्यादातर सूबों में हैं। सभी सरकारों का प्रयास ऐसी …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *