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सौंफ उत्पादन का हब बनेंगे राजस्थान के चार रेतीले जिले

राजस्थान में सिंचाई के साथ, पीने के पानी का भी अभाव है। पानी भी खारा है। सभी फसलों की तंदुरुस्ती के लिए ठीक नहीं। ऐसे हालात में मीठी सौंफ की खेती बड़ी ख़बर है। जल्दी ही रेतीले और खारे पानी वाले चार जिलों में सौंफ उगाने की तैयारी चल रही है।

चार रेगिस्तानी जिले, जहाँ किसान सिंचाई के लिए खारे पानी पर निर्भर हैं, सौंफ़ उत्पादन के केंद्र के रूप में उभरने वाले हैं। तीन साल तक चले एक अध्ययन के बाद यह बात सामने आई है। इस अध्ययन में खारे पानी से ड्रिप सिंचाई के माध्यम से फसल की विभिन्न किस्मों की उपज की जांच की गई है। इस शोध में नमक प्रभावित मिट्टी के प्रबंधन पर भी चर्चा की गई है, जहाँ सौंफ़ की खेती की जाती है।

मिली जानकारी अनुसार टैक्सोनॉमिक रूप से फोनीकुलम वल्गेर के रूप में वर्गीकृत , सौंफ़ एक कठोर, बारहमासी जड़ी बूटी है जिसमें पीले फूल और पंखदार पत्तियां होती हैं।बीकानेर स्थित स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बीकानेर, नागौर, चूरू और बाड़मेर जिलों में यह अध्ययन किया। परीक्षणों में विभिन्न सौंफ किस्मों की उपज और नमक सहनशीलता को मापा गया और उत्साहजनक परिणाम मिले। सौंफ की किस्म आरएफ-290 खारे पानी से सिंचाई के लिए उपयुक्त पाई गई है। अध्ययन में ब ताया गया है कि प्रायोगिक सिंचाई से प्रति हेक्टेयर लगभग नौ क्विंटल सौंफ का उत्पादन हुआ तथा जिन क्षेत्रों में नलकूपों के माध्यम से खेती की जाती है, वहां भी सौंफ का अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

खारे पानी की सिंचाई वाले इलाकों में सौंफ की खुशबू बिखेरने वाले परीक्षण कृषि अनुसंधान केंद्र, बीकानेर में आयोजित किए गए, जो जिला मुख्यालय से 9 किमी और विश्वविद्यालय से तीन किमी दूर स्थित है।

अध्ययन के अनुसार, 4 डेसीसिमेंस प्रति मीटर (डीएस/एम) विद्युत चालकता वाले खारे पानी का उपयोग आरएफ-290 किस्म की सिंचाई के लिए किया जा सकता है।

परियोजना की गतिविधियों का समन्वय करने वाले केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल के प्रधान वैज्ञानिक रामेश्वर लाल मीना ने कहा कि सौंफ उत्पादन के लिए चुने गए खारे पानी से कृषि भूमि की उत्पादकता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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