बिहार में धान की फसल आसमान पर निर्भर करती है। अच्छी बरसात नहीं तो फिर खेतों में सूखाड़ की स्थिति। पिछले दो साल से बिहार के किसानों के सामने यही हालात हैं। इसका मतलब किसानों की आर्थिक स्थिति से लगाया जा सकता है।
एक ख़बर के मुताबिक अब किसानों को धान की खेती में नुकसान नहीं झेलना होगा। एक गैर सरकार संस्था सेंटर फॉर वर्ल्ड सॉलिडेरिटी (सीडब्ल्यूएस) ने आईआईटी खड़गपुर के तकनीकी हस्तक्षेप से स्वदेशी किस्म की चावल विकसित की है। आईआईटी खड़गपुर ने धान की नई किस्म को विकसित करने में पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला ब्लॉक के एक गांव में किसान उत्पादक संगठन की मदद की है। पोषक तत्वों से भरपूर यह चावल की एक ऐसी किस्म है जिसकी पैदावार-कम से कम बारिश में भी हो सकती है साथ ही इसमें उर्वरक की भी आवश्यकता कम होती है।
सिंहभूम जिले के जिले के घाटशिला प्रखंड के भदुआ पंचायत के छोटा जमुना गांव में चयनित किसानों ने चावल की एक दुर्लभ किस्म की खेती की थी, चावल की इस दुर्लभ किस्म का नाम बाली भोजूना है। साल 2019-20 के दौरान यह खेती की गई थी। सीडब्लयूएस के अधिकारी ने कहा कि इसकी खेती करने वाले स्थानीय किसानों ने उनकी टीम को बताया था चावल की यह किस्म बाली भोजूना स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी है।
किसानों के हित को देखते हुए सीडब्ल्यूएस ने इस स्वदेशी किस्म के चावल को संरक्षित करने का फैसला किया और इसके प्रसार का भी जिम्मा उठाया। इसके बाद चावल के सैंपल को आईआईटी खड़गपुर के कृषि और खाद्य इंजीनियरिंग विभाग द्वारा संचालित विश्लेषणात्मक खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला में भेजे गए। इस किस्म के चावल को उगाने में किसानों को ज्यादा खाद का खर्च भी नहीं उठाना पड़ता है।
प्रयोगशाला में जांच से यह पता चला कि 100 ग्राम बाली-भोजुना चावल में 3.68 ग्राम कैलोरी, 1.97 ग्राम फाइबर, 76.83 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.28 ग्राम प्रोटीन और 0.65 ग्राम फैट होता है. इसके अतिरिक्त, 100 ग्राम चावल में लगभग 3.03 मिलीग्राम थायमिन, 0.04 मिलीग्राम राइबोफ्लेविन और 9.3 मिलीग्राम नियासिन भी होता है।
इस धान की खासियत यह है कि किसी भी प्रकार की मिट्टी में इसकी खेती हो सकती है। इसमें केमिकल खाद की आवश्यकता नहीं होती है। साथ ही यह खरपतवार प्रतिरोधी है। इस चावल के बीज मात्र 50 रुपये प्रति किलो मिलते हैं जबकि अन्य संकर चावल किस्मों के बीज बाजार में 200-300 रुपये में उपलब्ध हैं। इस धान की खेती के लिए पानी की भी बहुत कम आवश्यकता होती है।