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राजस्थान : बकरी की तीन नस्लों को मिली राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के वैज्ञानिकों द्वारा बकरी की तीन नई नस्लों का पंजीयन राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल के अन्तर्गत करवाया गया। विश्वविद्यालय के अधीनस्थ पशु उत्पादन विभाग द्वारा बकरी पालन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कार्य किया है जिसके तहत बकरी की तीन नई नस्लों का राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकरण करवाया गया है। ये तीनों नस्लें राजस्थान के अलग-अलग जिलों में पायी जाती हैं। इन नस्लों के पंजीयन के बाद विश्वविद्यालय अधिकारिक रूप से इन नस्लों के शुद्ध वंशक्रम कर कार्य कर पायेगा जिससे प्रदेश के बकरी पालकों को इन नस्लों के शुद्ध पशु प्राप्त हो सकेंगे जो बकरी पालन के क्षेत्र को एक नई पहचान दिलायेगा।

सोजत बकरी नस्ल : उत्तर-पश्चिम शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्र की नई नस्ल है जिसका उद्गम स्थल सोजत और उसके आसपास का क्षेत्र है। इस नस्ल का मूल क्षेत्र पाली जिले की सोजत और पाली तहसील, जोधपुर जिले की बिलाड़ा तथा पीपाड़ तहसील हैं। यह नस्ल राजस्थान के पाली, जोधपुर, नागौर और जैसलमेर जिलों तक फैली हुई है।

यह नस्ल स्थानीय रूप से अपने गुलाबी त्वचा रंग एवं लम्बे कानों के लिए पहचानी जाती है। सोजत बकरी आकार में मध्यम होती है और इसके शरीर के सफेद रंग में भूरे धब्बे, लम्बे लटके हुए कान, ऊपर की ओर मुडें हुए सींग तथा हल्की दाढ़ी भी पाई जाती है। यह नस्ल मुख्य रूप से मांस के लिए पाली जाती है। इसका दुग्ध उत्पादन कम होता है।

सोजत नस्ल राजस्थान की अन्य मौजूदा नस्लों से काफी अलग है। बाहरी लक्षणों जैसे बकरी का रंग, शरीर की संरचना, कान, सींग आदि बकरी की अन्य नस्लों से अलग है। इसके अलावा मारवाड़ को छोड़कर बकरी का मूल पथ और वितरण भी अलग है जो सोजत के मूल क्षेत्र में पाया जाता है। इस नस्ल में कुछ अनूठी विशेषताएॅं हैं जो पूरे देशभर के बकरी पालकों द्वारा पसंद की जाती हैं। बकरीद के दौरान इस नस्ल के बकरों का मूल्य अच्छा मिलता है क्योंकि यह अन्य बकरियों की नस्लों में सबसे सुन्दर नस्ल की बकरी है। इस नस्ल के पंजीकरण के बाद देश और राज्य को इसके शुद्ध जर्मप्लाज्म गैर-वर्णित वंशकरण में सुधार होगा।

गूजरी बकरी की एक नई नस्ल है जो जयपुर, अजमेर और टौंक जिलों और नागौर तथा सीकर जिले के कुछ हिस्सों में अर्द्धशुष्क पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में पायी जाती है। इस नस्ल का मूल क्षेत्र नागौर जिले की कुचामन और नावा तहसील है। इसके अतिरिक्त इसका विस्तार अजमेर एवं जयपूर जिलों में भी है। इस नस्ल के जानवर आकार में बड़ें होते हैं। मुख्य रूप से दूध और मांस के लिए पाले जाते हैं। बकरी का रंग पैटर्न मिश्रित भूरा सफेद होता है जिसमें सफेद रंग का चेहरा, पैर और पेट इस नस्ल की विशिष्ट विशेषताएॅं होती हैं।

इसके नर को मांस के लिए पाला जाता है। राजस्थान की अन्य बकरी नस्लों की तुलना में गूजरी नस्ल की बकरी का दूध उत्पादन अधिक होता है। सफेद रंग का चेहरा, पैर, पेट और पूरे शरीर पर भूरे रंग के धब्बे होते हैं जो कि विशिष्ट लक्षण हैं जिससे यह दूसरी नस्लों से भिन्न नजर आती है। इस नस्ल के कान लटके हुए, भूरे धब्बों को साथ सफेद रंग के घुमावदार होते हैं। सिरोहो बकरी की तुलना में इसकी पीठ सीधी होती है जो पीछे की ओर झुकी हुई होती है।
करौली बकरी राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी आर्द्र मैदानों की नई नस्ल है।

यह नस्ल इस क्षेत्र की स्वदेशी तथा द्विप्रयोजनी नस्ल है जिसे बहुत लम्बे समय से पाला जा रहा है। इस नस्ल को मुख्य रूप से मीना समुदाय द्वारा पाला जाता है। नस्ल का मूल क्षेत्र करौली जिले की सपोटरा, मान्डरेल तथा हिंडौन तहसीलें हैं। यह नस्ल करौली, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी और बारां जिलों तक फैली हुई है।

इस नस्ल की बकरी के चेहरा, कान, पेट और पैरों पर भूरे रंग की पट्टियों के साथ बकरी के रंग का पैटर्न काला है। कान लम्बे, लटके हुए तथा कानों की सीमा पर भूरे रंग की रेखाओं से मुड़े होते हैं और जानवरों की नाक रोमन होती है। मध्यम आकार के सीेंग जो कि ऊपर की ओर नुकीले होते हैं, इसकी एक विशिष्ट विशेषता है। ये सभी लक्षण इसको अन्य नस्लों से अलग करते हैं। करौली बकरी का मूलक्षेत्र तथा वितरण क्षेत्र राजस्थान की अन्य मौजूदा नस्लों से अलग है। इस नस्ल के पंजीकरण से गैर-वर्णित नस्ल में सुधार होगा और इस नस्ल को बढ़ावा मिलेगा।

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