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हिमाचल प्रदेश : खाद के संकट से बदहाल सेब उगाने वाले

भविष्य में सेब के उत्पादन व उत्पादकता में कमी आएगी| बागवानी का संकट और अधिक गहरा होगा| सेब की बर्बादी से प्रदेश के सेब उगाने वालों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगा।इससे दो लाख सेब उगाने वालों पर असर होगा|

इसकी वजह , हिमाचल प्रदेश में खाद का संकट है| प्रदेश में सरकार हिमफेड के माध्यम से किसान-बागवानों तक खाद पहुंचाने का काम करती है। हिमफेड के आंकड़ों के अनुसार जहां पिछले साल प्रदेश में 74,604 मीट्रिक टन खाद पूरे साल में किसानों को वितरित की गई थी। प्रदेश में अभी पिछले साल के मुकाबले 22,598 मीट्रिक टन खाद की बिक्री हुई है|

कुल्लू, मनाली, बंजार,इलाके के मणिकर्ण समेत अन्य क्षेत्रों में 20 हजार हेक्टेयर भूमि पर सेब फसल तैयार होती है। सेब के पेड़ों की प्रूनिंग के बाद पेड़ों के नीचे तौलिये बनाए जाते हैं। इनमें 12:32:16 समेत पोटाश का प्रयोग किया जाता है। हालांकि, हिमफेड ने 8000 हजार बैग खाद की डिमांड कुल्लू जिले से भेजी है, लेकिन पहुंच नहीं पाई है।

कुल्लू, मनाली, बंजार, मणिकर्ण समेत अन्य क्षेत्रों में 20 हजार हेक्टेयर भूमि पर सेब फसल तैयार होती है।
जनवरी व फरवरी माह में हुई बेहतर बर्फबारी के पश्चात बागवानों को अपने बगीचे में प्राथमिकता से खाद डालने के कार्य करना है। परन्तु आज जिन खादों की आवश्यकता है सरकार इन्हें उपलब्ध नहीं करवा रही है और खुले बाजार में खादों की कीमतों में गत वर्ष की तुलना में भारी वृद्धि की गई है।

आजकल बगीचों में पोटाश,12:32:16 NPK 15:15:15 डालने का समय आ गया है, परन्तु कहीं पर भी यह खादें उपलब्ध नहीं है और अब मजबूरन बागवानों को खुले बाजार से निम्न गुणवत्ता वाली खादें जोकि कृषि व बागवानी विश्वविद्यालय या बागवानी विभाग द्वारा अनुमोदित नहीं है उन्हें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

इससे भविष्य में सेब के उत्पादन व उत्पादकता में कमी आएगी जिससे बागवानी का संकट और अधिक गहरा होगा और सेब की आर्थिकी की बर्बादी से प्रदेश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगा।प्रदेश में खाद की आपूर्ती का काम देखने वाली हिमफेड का कहना है कि विदेश से कच्चे माल की उपलब्धता न होने के चलते खाद बनाने वाली कंपनियों में खाद के निर्माण में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जिसकी वजह से प्रदेश में भी खाद की कमी देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र के साथ बात करके प्रदेश में खाद की आपूर्ति बढ़ाने के लिए प्रयास किए है|

हिमाचल प्रदेश किसान सभा ने खाद की कीमतों में भारी वृद्धि का भी विरोध जताया है। सभा का आरोप है कि पिछले साल जो कैल्शियम नाइट्रेट का 25 किलो का एक बैग 1100 ₹ से 1250 ₹ का मिल रहा था, वह अब 1300 ₹ से लेकर 1750 ₹ का मिल रहा है।

पोटाश का 50 किलो का एक बैग जो गत वर्ष 1150 ₹ में मिल रहा था, उसकी कीमत भी अब 1750 ₹ वसूली जा रही है। NPK 12:32:16 जिसकी कीमत गत वर्ष 1200₹ थी उसकी कीमत भी 1750 कर दी गई है बावजूद इसके न तो पोटाश खाद उपलब्ध है और न ही NPK 12:32:16 उपलब्ध है।

गौरतलब है कि पिछले साल हिमाचल प्रदेश स्टेट कॉपरेटिव मार्केटिंग एंड कंज्यूमर्स फेडरेशन (हिमफेड) के आंकड़ों के अनुसार यूरिया की 42,884 मीट्रिक टन बिक्री हुई थी जबकि अभी तक इसकी कमी के चलते केवल 2,9052 मीट्रिक टन बिक्री हुई है।

इसके अलावा एनपीके पिछले साल 11,230 मीट्रिक टन और 31 जनवरी तक 9,943 मीट्रिक टन, एनपीके 15ः15ः15 6,580 मीट्रिक टन और अभी तक 5,832 मीट्रिक टन और एमओपी पिछले साल के मुकाबले सबसे अधिक 4,042 मीट्रिक टन की कमी देखी जा रही है।

 

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