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झारखंड : जमीन की ताकत कम होने की ख़बर से बेचैन हैं लाखों किसान

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा जारी एक रिपोर्ट ने किसानों (Farmers) की चिंता को बढ़ाने का काम किया है. सीएसई ने झारखंड में भूमि क्षरण (Soil Erosion) पर एक अध्ययन किया गया है जिसमें पता चला कि झारखंड में भूमि की उत्पादकता तेजी से घट रही है. हालांकि राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता, हरे भरे इलाके, कल-कल बहते झरने , जंगल और कृषि की अपार संभावनाओं के लिए जाना जाता है| अब चिंता की बात यह है कि झारखंड उन शीर्ष तीन राज्यों में शामिल है जहां 30 प्रतिशत से अधिक भूमि का क्षरण हो रहा है| इस तरह से सीएसई से झारखंड में 69 प्रतिशत भूमि क्षरण का चौंका देने वाला आंकड़ा दर्ज किया है|

झारखंड प्रदेश में लगभग 10.0 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि, अम्लीय समस्या से ग्रस्त (पी.एच.5.5 से कम) के अंतर्गत आती है, जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 48 प्रतिशत है। विभिन्न एग्रो-क्लाईमेटिक जोन में पड़नेवाली जिलों में अम्लीय भूमि की स्थिति को देखने से उत्तरी पूर्वी पठारी जोन (जोन IV) का अंतर्गत जामताड़ा, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग एवं राँची के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 50 प्रतिशत से अधिक भूमि अम्लीय समस्या से ग्रस्त है, जिसका पी.एच. 5.5 से कम पाया गया है।

इस तरह पश्चिमी पठारी जोन (जोन V) में सिमडेगा, गुमला एवं लोहरदगा में 69 प्रतिशत से 72 प्रतिशत तक अम्लीय भूमि की समस्या है, जबकि पलामू, गढ़वा एवं लातेहार में अम्लीय भूमि का क्षेत्रफल 16 प्रतिशत से कम पाया गया है।

दक्षिण-पूर्वी पठारी जोन (जोन VI) में अम्लीय भूमि की समस्या सबसे ज्यादा है। इस जोन के अंतर्गत आने वाले तीनों जिलों – सरायकेला, पूर्वी एवं पश्चिम सिंहभूम में अम्लीय भूमि के क्षेत्र 70 प्रतिशत के करीब है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि झारखंड प्रदेश में अम्लीय भूमि की समस्या सर्वाधिक प्रमुख समस्या है।

भूमि की उपजाऊ क्षमता को कम करने का सबसे बड़ा कारण उसकी लहरदार प्रकृति है| झारखंड की मिट्टी भी ऐसी ही है| ढलान जमीन ज्यादा है| इसके कारण पानी ज्यादा तेजी से नीचे उतरता है. पानी के तेज बहाव के कारण मिट्टी की उपरी परत बह जाती है| उल्लेखनीय है कि मानसून के दौरान झारखंड में लगभग 1300 से 1400 मिमी बारिश दर्ज की जाती है|

झारखंड क्षेत्र के आधा से ज्यादा जिलों में फ़ॉस्फोरस की कमी है। गुमला, पूर्वी सिंहभूम, सिमडेगा, गोडडा, सरायकेला एवं पश्चिमी सिंहभूम में 80 प्रतिशत से अधिक भूमि में फ़ॉस्फोरस की उपलब्धता बहुत कम है।

पश्चिम सिंहभूम, लातेहार एवं लोहरदगा जिलों में सल्फर की कमी 60-80 प्रतिशत तक है। गढ़वा, हजारीबाग, गुमला, देवघर, गोड्डा, राँची, सरायकेला, पाकुड़, दुमका, पूर्वी सिंहभूम, साहेबगंज में 30 से 58 प्रतिशत तक भूमि में सल्फर की कमी पाई गई है। अन्य जिलों में इसकी उपलब्धता संतोषजनक है। उपलब्ध पोटैशियम की कमी पूर्वी एवं पश्चिम सिंहभूम एवं धनबाद के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 30 से 50 प्रतिशत तक की भूमि में है। अन्य जिलों में कमी का स्तर 5 से 25 प्रतिशत तक है। उपलब्ध नाइट्रोजन को स्थिति कुछ जिलों (गुमला, देवघर, सिमडेगा एवं लोहरदगा) को छोड़कर सभी जिलों में मध्यम पाया गया है। जैविक कार्बन की स्थिति नाइट्रोजन के जैसा ही है।

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