देश के शीर्षस्थ औद्योगिक संगठन एसोचैम और चार्टर्ड एकाउंटेंट की वैश्विक संस्था ग्रैंडथार्टन कि एक रिपोर्ट के मुताबिक खाद्य प्रसंस्करण भारी संभावनाओं का क्षेत्र है| वर्ष 2024 तक इसमें करीब 90 लाख रोजगार के मौके सृजित होंगे|
इसमें से करीब 10 लाख लोगों को तो सीधे रोजगार मिलेगा| शहरीकरण, एकल परिवार के बढ़ते चलन के कारण प्रसंस्कृत खाद्यपदार्थों की मांग बढऩी ही है| विदेशी बाजारों में भी ऐसे गुणवत्ता युक्त उत्पादों की अच्छी मांग है|
केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार खेत से बाजार तक पहुंचने के दौरान हर साल करीब 92651 करोड़ के अनाज, दूध, फल, मांस और मछलियां बर्बाद हो जाती हैं. इनमें से 40811 करोड़ रुपये की सिर्फ फल और सब्जियां होती हैं| चूंकि तमाम चीजों के उत्पादन में उत्तर प्रदेश ही अग्रणी है, लिहाजा सर्वाधिक घाटा भी यहां के ही किसान रहते हैं| प्रसंस्करण की इकाइयां लगने से यह बर्बादी रुकेगी|
प्रदेश उत्तर प्रदेश गन्ना के उत्पादन में देश में नंबर एक है. सर्वाधिक आबादी के नाते श्रम और बाजार भी कोई समस्या नहीं है| करीब 9 तरह के कृषि जलवायु क्षेत्र और भरपूर पानी की उपलब्धता की वजह से किसानों को प्रसंस्करण इकाइयों की मांग के अनुसार फसल उगाना आसान है|
इसका सीधा लाभ यहां के किसानों को मिलेगा, साथ ही इन इकाइयों के लिए कच्चे और तैयार माल के उत्पादन, ग्रेडिंग, पैकिंग, लोडिंग-अनलोडिंग और इनको बाजार तक पहुंचाने के क्रम में स्थानीय स्तर पर लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार मिलेगा| ऐसा होने पर प्याज, आलू, टमाटर की मंदी सुर्खियां नहीं बनेंगी, प्रसंस्करण तो एक जरिया होगा ही| साथ ही सरकार ऐसी फसलों का एमसपी के दायरे में लाएगी| इसके लिए एक हजार करोड़ रुपये का भामाशाह भाव स्थिरता कोष बनेगा|
इसी क्रम में सरकार सहारनपुर, लखनऊ, हापुड़, कुशीनगर, चन्दौली व कौशाम्बी में आलू और क्षेत्र विशेष की फसलों को ध्यान में रखते हुए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उन्नयन योजनांतर्गत 14 नए इन्क्यूबेशन सेंटरों का निर्माण शुरू करने की तैयारी है|