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मौसम की बेरुखी ने बिगाड़ी भारतीय आम की सेहत

प्रकृति की बेरुखी के कारण आम उत्पादक किसानों को काफी नुकसान हुआ है| आबोहवा बदलने का सीधा असर बागो और खेती पर पडा है| किसान भी मुआवजे की मांग कर रहे हैं| जलवायु परिवर्तन के कारण आम उत्पादकों को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है| कोकण इलाके के रत्नागिरी के किसानों का कहना है कि इस बार हापुस आम की बिक्री से लागत तक निकाल पाना मुश्किल लग रहा है| आम उत्पादक अब किसान सरकार से मदद की उम्मीद कर रहे हैं|

कोंकण में आम का उत्पादन तीन चरणों में होता है| इसकी शुरुआत जनवरी महीने से होती है लेकिन आम उत्पादकों को इस साल शुरू से शुरू हुई प्रकृति की अनियमितताओं का सामना करना पड़ा है| शुरुआत में आम के मंजर(बौर) समय से पहले गिर गए| लेकिन इससे उबरने के दौरान किसानों को फिर से ओलावृष्टि का सामना करना पड़ा| नतीजतन, आम की देखरेख सही से नहीं हो पाई| जिसका नकारात्मक असर दिखाई दे रहा है|
कई बाजारों में यह दिखाई दे रहा है, लेकिन, आवक बहुत कम है| कुछ जगहों पर आम की खेप देरी से पहुंच सकती है| वहीं मुंबई के बाजार में इसके आने की शुरुआत हो चुकी है| विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मुम्बई के वाशी बाजार में जनवरी से मार्च तक हापुस की एक लाख पेटियां पहुंच चुकी हैं|साथ ही खाड़ी देशों को 10,000 बक्से निर्यात किए गए हैं. इनमें दुबई, ओमान और कुवैत देश शामिल हैं|

महाराष्ट्र के ही रत्नागिरी, गुजरात के वलसाड़ और नवसारी में सब से अधिक पैदा होता है| देश से हर साल करीब 200 करोड़ का अल्फांसो आम केवल यूरोपीय देशों को निर्यात किया जाता है| इस के अलावा दुबई, सिंगापुर और मध्य एशिया के दूसरे देशों में भी इस का निर्यात होता है| हर साल करीब 50 हजार टन अल्फांसो आम का उत्पादन होता है|

अल्फांसो का मुख्य कारोबार नबी मुंबई के वाशी स्थित कृषि उत्पाद बाजार समिति से होता है| हर साल करीब 600 करोड़ का अल्फांसो का कारोबार होता है|

हापुस भारत का सब से खास किस्म का आम है| अल्फांसो अंगरेजी नाम है| महाराष्ट्र में इस आम को हापुस, कर्नाटक में आपुस के नाम से भी जाना जाता है|

अल्फांसो भारत का सब से खास किस्म का आम है| अल्फांसो अंगरेजी नाम है. महाराष्ट्र में इस आम को हापुस, कर्नाटक में आपुस के नाम से भी जाना जाता है| अल्फांसो का नाम पुर्तगाल के मशहूर सैन्य रणनीतिकार अफोंसो दि अल्बूकर्क के नाम पर पड़ा है| अफोंसो दि अल्बूकर्क को बागबानी का बहुत शौक था| गोवा में जब पुर्तगालियों का शासन था उस समय अफोंसो दि अल्बूकर्क ने इस आम के पेड़ लगाए थे| अंगरेजों को यह आम बहुत पसंद था| अफोंसो दि अल्बूकर्क के सम्मान में इस का नाम अल्फांसो रखा गया| अंगरेजों की पसंद के ही कारण आज भी यह आम सब से अधिक यूरोपीय देशों में भेजा जाता है|

अल्फांसो आम का वजन 150 से 300 ग्राम के बीच होता है| यह मिठास, सुगंध और स्वाद में दूसरे किस्म के आम से अलग होता है| इस की सब से बड़ी खासीयत यह होती है कि यह पकने के एक सप्ताह बाद तक भी खराब नहीं होता| इस खास गुण के कारण ही देश से बाहर निर्यात किए जाने वाले आमों में अल्फांसो सब से ज्यादा निर्यात किया जाता है|

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