पूसा ने डबल जीरो मस्टर्ड-33 नामक एक किस्म तैयार की है| जो स्वास्थ्य के लिहाज से काफी अच्छी है| इसमें इरुसिक एसिड 2 फीसदी और ग्लूकोसिनोलेट की मात्रा 30 माइक्रोमोल से कम है, जो इसे अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतारती है|
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर के मैदानी इलाकों और हिमाचल प्रदेश में खेती के लिए यह नई किस्म अत्यधिक उपयुक्त है| किसानों के लिए खास बात यह है कि पैदावार में शानदार होने के साथ-साथ यह सफेद रतुआ रोग प्रतिरोधी है, जिसकी वजह से कई बार नुकसान हो जाता था|
संस्थान के निदेशक के अनुसार पूसा डबल जीरो मस्टर्ड-33 की औसत उपज 26.44 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है| भारत में सरसों की औसत पैदावार 15-16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही है| इसका दाना बड़ा है| इसमें 38 प्रतिशत तेल निकलेगा| यह लगभग 141 दिनों में पक जाती है| कुल मिलाकर किसानों के लिए यह एक शानदार किस्म साबित होने वाली है| इसका तेल इंसानों के लिए अच्छा है और खली पोल्ट्री के लिए|
डबल जीरो मस्टर्ड, सरसों की सबसे उन्नत किस्म में गिना जाता है|
सरसों के तेल में 42 फीसदी फैटी एसिड होता है, जिसे इरुसिक एसिड कहा जाता है| यह एसिड मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है| हृदय संबंधी बीमारियों के जिम्मेदार माना जाता है|
डबल जीरो मस्टर्ड-33 में इरुसिक एसिड 2 फीसदी से भी कम है| इसे जीरो एसिड माना जाता है| इसलिए यह सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाता|
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कम ग्लूकोसिनोलेट वाली खली पशुओं के लिए बेहतर मानी जाती है| कम ग्लूकोसिनोलेट वाली खली का इस्तेमाल पोल्ट्री इंडस्ट्री में किया जा सकता है|
पूसा डबल जीरो मस्टर्ड-33 में ग्लूकोसिनोलेट की मात्रा 30 माइक्रोमोल से कम है|
ग्लूकोसिनोलेट एक सल्फर कंपाउंड होता है|
इसका इस्तेमाल उन पशुओं के भोजन के रूप में नहीं किया जाता जो जुगाली नहीं करते| इससे उनके अंदर घेंघा रोग हो जाता है|
सरसों उत्पादन में पहले और दूसरे नंबर पर रहने वाले राज्यों राजस्थान और हरियाणा के किसानों के लिए पूसा ने डबल जीरो मस्टर्ड-33 कमाई का अच्छा जरिया बन सकती है| वो इसका प्रचार-प्रसार स्वास्थ्य के लिए बेहतर किस्म के तौर पर करके सामान्य सरसों के मुकाबले ज्यादा दाम ले सकते हैं| देश के कुल सरसों उत्पादन में राजस्थान की हिस्सेदारी 41 परसेंट एवं हरियाणा की हिस्सेदारी 13.5 फीसदी है|