आलोक शुक्ल “जोरदार”
कहते हैं अगर मन में जज्बा हो कुछ करने का और ठान लिया हो एक नई राह बनाने का तो मुश्किलें भी सामने बानी पड़ जाती हैं बात कर रहे हैं हम यूपी के बाराबंकी जिले में वकालत की पढ़ाई करने के बाद मोइनुद्दीन की जिन्होंने फूलों की खेती करने का फैसला लिया और खेती से वो आज लाखों रुपये कमा रहे हैं. मोइनुद्दीन को राज्य सरकार सम्मानित भी कर चुकी है.
वकालत की पढ़ाई करने के बाद जिले के किसान मोइनुद्दीन ने खेती करने का फैसला लिया था. जिसके बाद वह हजारों किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन चुके हैं. दरअसल परंपरागत खेती छोड़ फूलों की खेती करके देश-दुनिया में मोइनुद्दीन ने नाम कमाया. वहीं फूलों की खेती के लिए मोइनुद्दीन को राज्य सरकारें सम्मानित भी कर चुकी हैं.
डीएम आवास से लेकर संसद के गलियारों तक पहुंचती है मोइनुद्दीन के फूलों की महक:जिलाधिकारी आवास से लेकर संसद तक के गलियारों में जिन फूलों की महक पहुंचती है, उन्हें उगाने का श्रेय किसान मोइनुद्दीन को जाता है. किसान मोइनुद्दीन ने कानून की पढ़ाई करने के बावजूद अपने पुश्तैनी पड़ी जमीन पर विदेशी फूलों की खेती करके सबको हैरानी में डाल दिया. मोइनुद्दीन के इस काम की सराहना जिला उद्यान विभाग भी करता है. मोइनुद्दीन ने न सिर्फ अपने खेतों में रंग-बिरंगे विदेशी फूल उगाकर गांव के चारों तरफ उसकी महक बिखेरी, बल्कि उस महक के साथ-साथ अब तक हजारों लोगों को रोजगार भी दे चुके हैं. शायद यही वजह है कि आज गांव के रोजगार पाए लोगों ने मोइनुद्दीन को अपना आदर्श मान लिया है. गांव वाले अब मोइनुद्दीन को प्रधान जी कहकर बुलाते हैं और उन्होंने इन्हें प्रधान भी चुन लिया है.
मोइनुद्दीन को मिले हैं कई पुरस्कार , कई राज्य सरकारें कर चुकी हैं सम्मानित:देश के प्रधानमंत्री से लेकर, कई राज्यों की सरकार मोइनुद्दीन को अलग-अलग प्रकार के पुरस्कारों से नवाज चुकी है. उत्तर प्रदेश सरकार ने मोइनुद्दीन को किसान आयोग का सदस्य बनाया है. मोइनुद्दीन को उत्तर प्रदेश का पहला पाली हाउस लगाने का श्रेय भी जाता है.
किसानों के लिए बन गए हैं रोल मॉडल किसान मोइनुद्दीन ने सबसे पहले हालैंड के जरबेरा फूल की खेती की शुरुआत की. उसके बाद आज मोइनुद्दीन कई प्रकार के विदेशी फूलों की खेती करके अच्छा लाभ कमा रहे हैं. इनके इस प्रयास से गोंडा, बहराइच, बलरामपुर, सीतापुर, लखीमपुर खीरी और राज्य के अन्य जिलों के किसान भी इस प्रकार की खेती से जुड़ चुके हैं. शुरुआत में फूल की खेती कम थी तो, लखनऊ में ही फूल बिक जाते थे. वहीं जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ा फूलों को बड़े महानगरों में भेजने की आवश्यकता पड़ने लगी.