बिहार में सुबौर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मक्का की ज्यादा पैदावार वाली एक नई किस्म तैयार की है। तीन महीने में तैयार होने वाली इस किस्म की जानकारी और लाभ से किसान उत्साहित हैं। बिहार में सबसे ज्यादा मक्का का उत्पादन होता है, लेकिन खरीफ सीजन में मक्का उत्पादन में बिहार कई प्रदेशों से काफी पीछे है। इसकी मूल वजह यह थी कि खरीफ सीजन के लिए मक्का के बीज का कोई बेहतर प्रभेद ही नहीं है। जो बाहरी बीज बाजार में उपलब्ध हैं, उससे खेती करने पर वर्षा के मौसम में फसल में कई प्रकार की बीमारी लग जाती है।
अच्छा बीज न मिलने के कारण उन्नतशील किसानों का रुझान मक्का की खेती की तरफ नहीं है।चाह कर भी अधिकांश किसान इस मौसम में मक्का की खेती नहीं कर पाते हैं। इसको ध्यान में रखकर विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने बीते कई वर्षों के प्रयास से खरीफ सीजन के लिए उपयुक्त मक्का का नया बीज सबौर मक्का -1 विकसित किया है। जो बिहार के किसानों के लिए लाभकारी होगा।
कृषि विज्ञानियों के अनुसार यह मक्का मध्यम अवधि (92 दिन) में तैयारी होने वाला प्रभेद है। अधिक उपज देने वाली संकर प्रभेद की उपज प्रति क्विंटल 72.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। खरीफ सीजन के लिए उपयुक्त है। इसके बीज का रंग पीला, बोल्ड और चमकीला होता है। भुट्टे का आकार 22 सेंटीमीटर लंबा होता है।
मिली जानकारी अनुसार मक्का की नई किस्म का पौधा तेज़ हवा में भी खेतों में गिरता नहीं है। पौधा गिरता नहीं है। अच्छी स्टैंड क्षमता है। पकने पर भुट्टा का कैप भूरा रंग का हो जाता है। पौधा हरा रहता है, जो बेहतर चारे की गुणवत्ता देता है। प्रमुख पर्ण रोगों के प्रति मध्यम रूप से सहनशील है। अर्थात जल्दी इसमें रोग और कीड़े नहीं लगता है। ज्याद गर्मी में भी उत्पादन देता है।
बिहार में बांका जिले में जिले में आलू और मक्के की मिश्रित खेती के अनुकूल मिट्टी पाई गई है। कृषि विज्ञान के वैज्ञानिकों ने बताया कि किसान आलू के साथ मक्के की खेती कर अपनी आया दो गुनी कर सकते हैं। इससे आलू के पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।