tag manger - पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में करीब 300 हेक्टेयर में हो रही हल्दी की खेती – KhalihanNews
Breaking News
पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में करीब 300 हेक्टेयर में हो रही हल्दी की खेती

पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में करीब 300 हेक्टेयर में हो रही हल्दी की खेती

उत्तर प्रदेश में पूर्वी जिलों के किसानों को हल्दी की खेती रास आ रही है। हल्दी की खेती का रकबा लगातार बढ़ रहा है। कुशीनगर में तो किसानों की पहली पसंद हल्दी की खेती है। यह प्रयास कई संस्थानों का सुफल है।

हल्दी के उत्पादन में भारत का एकाधिकार है। दुनियां की उपज में भारत की हिस्सेदारी करीब 80 फीसद है। निर्यात में भारत का हिस्सा करीब 60 फीसद है। अमेरिका, ब्रिटेन, बांग्लादेश प्रमुख निर्यातक देश हैं। रोग प्रतिरोधक गुणों के कारण

कोरोना के बाद अन्य देशों खासकर मिडिल ईस्ट में इसकी मांग बढ़ी है। भारत में तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर के राज्यों में प्रमुख रूप से इसका उत्पादन होता है।

राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबंध कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) कुशीनगर के प्रभारी अशोक राय के अनुसार जिले में करीब 250 से 300 हेक्टेयर में किसान हल्दी की खेती कर रहे हैं। योगी सरकार से मिले प्रोत्साहन की वजह से दुदही ब्लॉक में एक एफपीओ भी हल्दी की खेती से लेकर प्रोसेसिंग और मार्केटिंग के क्षेत्र में काम कर रहा। ‌
यही काम एसएचडीए भी टाटा ट्रस्ट की मदद से रामकोला में कर रहा है। संस्था के प्रमुख वीएम त्रिपाठी का कहना है कि हल्दी की खेती की कुशीनगर में खासी संभावना है। अगर सरकार इसे कुशीनगर को एक जिला एक उत्पाद घोषित कर दे तो इससे मिलने वाली सुविधाओं से यह हल्दी के उत्पादन के लिहाज से दूसरा गुंटूर और इरोड बन सकता है।

कुशीनगर बिहार से सटा पूर्वांचल का एक जिला है। यह फोर लेन की सड़क से बिहार से लेकर बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों से इसकी बेहतर कनेक्टिविटी है। इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन जाने के बाद तो इसकी पहुँच विदेशों तक हो जाएगी। बुद्ध से जुड़ा होने के नाते ब्रांडिंग के जरिए कालानमक की तरह कुशीनगर की हल्दी में भी ब्रांड बनने की पूरी क्षमता है।

हल्दी के प्रोत्साहन के लिए सबसे बड़ी चुनौती अधिक उपज देने वाली प्रजाति की थी। परंपरागत रूप से किसान जिस स्थानीय प्रजाति की बोआई करते थे, उसकी प्रति हेक्टेयर उपज मात्र 175 कुंतल थी। एसएचडीए ने इसके लिए किसानों के सहयोग से राजेंद्र सोनिया, राजेंद्र सोनाली, मेवा नंबर1 और लैकडांग आदि प्रजातियों का डेमो किया। इसमें प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक 450 कुंतल उपज राजेंद्र सोनिया की मिली। अब हल्दी की इसी प्रजाति को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

वर्ष 2023 में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से किसानों को हल्दी की खेती के साथ अन्य मसालों धनिया, जीरा, सौंफ, मंगरैल और अजवाइन की खेती के लिए भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। मसालों की खेती के इस विविधिकरण (डाईवर्फिकेशन) में अजमेर स्थित राष्ट्रीय बीजीय अनुसंधान केंद्र भी मदद कर रहा है।

योगी सरकार की किसानों के हितों के प्रति प्रतिबद्धता देखते हुए देश की नामचीन संस्थाएं मसलन टाटा ट्रस्ट और अजीमजी प्रेमजी फाउंडेशन भी किसानों के बीच खेतीबाड़ी के क्षेत्र में पूर्वांचल में काम करने वाली सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट एसोसिएशन (एसएचडीए) के जरिए किसानों की मदद कर रहीं हैं।
इन सबकी मदद से हाल के कुछ वर्षों में हल्दी की खेती के रकबे में अच्छी खासी वृद्धि हुई है। साथ ही विभिन्न प्रजातियों के ट्रायल के बाद सबसे बेहतर उपज वाली प्रजातियों को प्रोत्साहित करने की वजह से हल्दी के प्रति हेक्टेयर उपज और गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।

About khalihan news

Check Also

उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे के सभी जिलों में विकसित होंगे गंगा वन

भारतीय परंपरा में पतित पावनी, मोक्षदायिनी मानी जाने वाली गंगा को अविरल, निर्मल और प्रदूषणमुक्त …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *