छह साल तक चले शोध में पाया गया कि यह जहरीले रसायनों के मुकाबले मात्र 15 से 20 फीसदी तक उपयोग होगा और फसलों व पौधों में लगने वाली बीमारियों पर अधिक असरदार होगा।
नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने बताया कि इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि इससे किसानों और बागवानों की खेती में रसायनों के छिड़काव में आने वाली लागत भी 50 से 70 फीसदी तक घट जाएगी। साथ ही सब्जियों और फलों में पेस्टीसाइड भी न के बराबर होगा। भारत सरकार ने इसे पेटेंट कर दिया है। इसके शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं।
औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी हमीरपुर में पादप रोग विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मोनिका ने बताया कि उनकी टीम ने अभी तक शिमला मिर्च और आम पर इसका सफल ट्रायल किया है। इन दोनों फसलों को जो भी बीमारियां लगीं, उसमें इस नैनो फंगीसाइड के छिड़काव का बेहतर असर हुआ।
अब कई फलों और फसलों पर आगामी ट्रायल शुरू कर दिए हैं। इनमें संतरा, किनू, आम समेत लोअर हिमाचल प्रदेश में पाए जाने वाले सभी फलों और सब्जियों पर भी ट्रायल किए जाएंगे। दावा किया जा रहा है कि इससे तैयार सब्जियां शरीर के लिए हानिकारक नहीं होगी।
नौणी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल के अनुसार नैनो फंगीसाइड किसानों-बागवानों के लिए लाभदायक होगा। उनकी खेती की लागत भी घटेगी। इस पर टीम ने आगामी शोध शुरू कर दिए हैं। इसमें कई फसलों पर ट्रायल होंगे। ट्रायल सफल होते ही इसे बाजार में उतारा जाएगा।।