लखनऊ काला दशहरी और वाराणसी का लंगड़ा, मालदा व बिहार के आम जीएम टैग मिलने के बाद भारत से निर्यात किए जाने वाले फलों में शामिल हैं। आंधी,, ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश से आम की फ़सल को नुक्सान पहुंचता है। बागवनों का इन आपदाओं से बड़ा नुक़सान होता है। बीते साल बरसात और अंधड़ से आम की फसल बर्बाद हो गई थी।
देश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना कई साल से चल रही है लेकिन आम की फसल अब तक इस बीमा योजना से बाहर थी। कितना भी नुकसान हो जाए लेकिन आम की फसल को बीमा योजना से एक रुपये की भी क्षतिपूर्ति नहीं मिलती थी। किसी फसल को बीमा योजना में शामिल करना डीएम की अध्यक्षता में बनी जिला स्तरीय मानीटरिंग कमेटी के अधिकार में होता है।
उत्तर प्रदेश के लखनऊ, वाराणसी, मुरादाबाद, सहारनपुर और प्रयागराज मण्डल में आम की पैदावार की खपत स्थानीय बाजार में होती है। वाराणसी का लंगड़ा और लखनऊ के मलिहाबाद के अलावा अमरोहा, हसनपुर, बिजनौर, सहारनपुर क्षेत्र में पैदा आम की किस्में जापान, दुबई, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात सहित दुनिया के कई देशों में पसंद की जाती हैं।
मिली जानकारी के अनुसार आम की फसल से औसत उपज 70 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर मानी गई है। इस राशि का पांच प्रतिशत यानि लगभग साढ़े तीन हजार रुपये देकर आम के बाग का बीमा होगा। आंधी-तूफान या ओलावृष्टि से क्षतिपूर्ति उन्हीं किसानों को दी जाएगी जो फसल का बीमा कराएंगे।
आम उत्पादक बीमा योजना का लाभ उठाने के लिए 15 दिसंबर तक पंजीकरण करा सकेंगे। एक हेक्टेयर आम की फसल के लिए 70 हजार रुपये की बीमित धनराशि निर्धारित की गई है। फसल का बीमा कराने वाले उत्पादकों को प्रति हेक्टेयर 3500 रुपये का प्रीमियम देना होगा। पांच प्रतिशत की दर से प्रीमियम राशि काटी जाएगी।
गौरतलब है कि भारत-आम के उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का सरताज है. हर साल 1.87 करोड़ लाख टन आम की पैदावार होती है। भारत दुनिया का 41 फीसदी आम का उत्पादन करता है। वहीं, 50 देशों को 5276.1 करोड़ टन आम एक्सपोर्ट करता है। चीन- दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन आमों के उत्पादन में दूसरे पायदान पर है। चीन हर साल 47 लाख टन आम पैदा करता है।