जालंधर और आस-पास के किसान पराली न जलाएं और आबोहवा साफ रहे। किसानों को जलाने की आदत से दूर करने के उद्देश्य से एक कदम उठाते हुए, भोगपुर सहकारी चीनी मिल ने धान की पराली का उपयोग करके बिजली पैदा करना शुरू कर दिया है। इसके लिए मिल किसानों से सीधे पराली 180 से 250 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीद रही है। इससे राज्य सरकार को कुछ हद तक राहत मिली है क्योंकि पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार अभी तक भोगपुर और इसके आसपास के इलाकों में पराली जलाने का कोई मामला सामने नहीं आया है।
भोगपुर चीनी मिल ने चालू सीजन में 40,000 मीट्रिक टन धान की पराली और 10,000 मीट्रिक टन गन्ने का अवशेष खरीदने का लक्ष्य रखा गया है। यह मिल सात महीने तक धान की पराली और पांच महीने तक गन्ने के कचरे का उपयोग करेगी।
पंजाब के अलावा हरियाणा में भी हर साल सर्दियों में किसानों के पराली जलाने से दिल्ली की आबोहवा साफ नहीं रहती। बीते दिनों हरियाणा मंत्रिमंडल की बैठक में पराली एक्स-सीटू प्रबंधन नीति हरियाणा 2023 को मंजूरी दी गई। khalihanews.com एक्स-सीटू के तहत फसल अवशेष को खेत से बाहर ले जाकर उसका मैनेजमेंट किया जाता है। इस नीति का मकसद राष्ट्रीय राजधानी और उसके आस-पास लगते क्षेत्रों में पराली जलाने के मामलों में कमी लाने, टिकाऊ ऊर्जा के लिए धान की पराली का उपयोग करने और 2027 तक फसल अवशेष जलाने का चलन खत्म करना है। हरियाणा में हर वर्ष लगभग 30 लाख टन धान की पराली उपलब्ध होती है। यह कुछ दिनों तक प्रदूषण का कारण बन जाती है।
अब जो नीति आई है उससे किसान धान की पराली जलाने की बजाय उसका सकारात्मक इस्तेमाल कर सकता है। अब इस नीति के तहत धान की पराली से बिजली, बायोगैस, बायो सीएनजी, जैव-खाद, जैव-ईंधन और इथेनॉल बनाया जाएगा। किसान धान के भूसे को काटने, एकत्र करने, बेलने, भंडारण करने और भूसे-आधारित उद्योगों व प्लांटों तक उसे पहुंचाने वाले कृषि उपकरणों और मशीनरी पर सब्सिडी के लिए पात्र होंगे। बता दें कि पराली जलाने के मामले में हरियाणा देश में दूसरे नंबर पर है। अब सरकार पराली को किसानों की कमाई का नया जरिया बनाने की कोशिश में जुटी हुई है।
अब जो नीति आई है उससे किसान धान की पराली जलाने की बजाय उसका सकारात्मक इस्तेमाल कर सकता है. अब इस नीति के तहत धान की पराली से बिजली, बायोगैस, बायो सीएनजी, जैव-खाद, जैव-ईंधन और इथेनॉल बनाया जाएगा. किसान धान के भूसे को काटने, एकत्र करने, बेलने, भंडारण करने और भूसे-आधारित उद्योगों व प्लांटों तक उसे पहुंचाने वाले कृषि उपकरणों और मशीनरी पर सब्सिडी के लिए पात्र होंगे. बता दें कि पराली जलाने के मामले में हरियाणा देश में दूसरे नंबर पर है। अब सरकार पराली को किसानों की कमाई का नया जरिया बनाने की कोशिश में जुटी हुई है।
जिला प्रशासन ने कहा कि, जिला प्रशासन ने चालू फसल सीजन में एक्स-सिटू प्रबंधन के माध्यम से 2.36 लाख मीट्रिक टन धान की पराली का प्रबंधन करने की योजना बनाई है। जालंधर जिले में लगभग 60 बेलर हैं जो तीन से पांच क्विंटल की गांठें बना सकते हैं। ये गांठें जिले के किसानों या कृषि समूहों द्वारा सीधे उद्योगों को बेची जाएंगी।
जिला प्रशासन ने किसानों को समझाया है कि पराली जलाने पर पैसे खर्च करने के बजाय पराली को सीधे मिल को बेचें और अतिरिक्त आय अर्जित करें। चीनी मिल के परिसर के अंदर एक स्थापित बिजली संयंत्र है और बिजली उत्पादन के लिए धान के अवशेषों का उपयोग किया जा रहा है जिसे सरकार को बेचा जा रहा है।
यह प्लांट खन्ना स्थित एक निजी कंपनी द्वारा चलाया गया था। यहां पराली का उपयोग करके बिजली का उत्पादन न केवल खतरे को खत्म करेगा बल्कि लोगों के लिए स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करने में भी मदद करेगा।