tag manger - फसल के अवशेष के और नीम के मिश्रण से बना पेस्टीसाइड मारेगा कीट, बाज़ार से सस्ता भी होगा – KhalihanNews
Breaking News

फसल के अवशेष के और नीम के मिश्रण से बना पेस्टीसाइड मारेगा कीट, बाज़ार से सस्ता भी होगा

पंजाब और हरियाणा में गेहूं और धान के अलावा बाजरा – मक्का के फसल अवशेष ( पराली व डंठल) खेत में ही जला देते हैं। पराली और नड़ा जलाने से आबोहवा की समस्या पैदा करता है। राजधानी दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के दिल्ली से सटे इलाकों में प्रदूषण की वजह से लोगों को सांस लेने में दिक्कत की ख़बरें अब हर साल सुर्खियों में रहती हैं।

गौरतलब है कि पंजाब में 2020 में पराली जलाने की कुल घटनाएं 10 हजार 214 दर्ज की गई थीं। वर्ष 2021 में ऐसे कुल मामले 7 हजार 648 ही थे। इस बार हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में भी 24 प्रतिशत की कमी आई है।

नेशनल पॉलिसी फॉर मैनेजमेंट ऑफ क्रॉप रेसिड्यू संस्था की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में लगभग 550 लाख टन फसल का अवशेष निकलता है। इसमें धान, गेहूं, मक्का, बाजरा का योगदान 70 फीसदी माना जाता है जबकि अकेले धान की पराली का योगदान 34 फीसदी है।

पंजाब में यह 51 मिलियन टन और हरियाणा में 22 मिलियन टन अवशेष निकलते हैं। यूपी में ये समस्या और भी ज्यादा है। वहां पर 60 मिलियन टन फसल की बचत रहती है।

धान की एक टन पराली जलाने से 5.5 किलो नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फासफोरस, 25 किलो पोटाशियम, 1.2 किलो सल्फर और ऑर्गेनिक कार्बन का नुकसान होता है।
आग लगाने के कारण भूमि की गर्मी से मिट्टी के लिए फायदेमंद जीवाणु भी मर जाते हैं। इससे बचाव के लिए सरकारें कई तरह के प्रयास कर रही हैं, लेकिन इसका समाधान नहीं निकाल पा रही थीं।

धान की पराली और गेहूं की नाड़ किसानों से लेकर सरकार तक के लिए सिरदर्द है। बहुत से किसान इसे खेतों में जला देते हैं और सरकार इन्हें जागरूक करने से लेकर जुर्माना तक लगाती है, पर स्थायी हल नहीं निकलता। अब यही पराली और नाड़ के “ब्राउन गोल्ड’ और नीम के मिश्रण से बना पेस्टीसाइड फसलों पर लगने वाले कीटों से निजात दिलाएगा, वह भी मार्केट में मिलने वाले कीटनाशकों से सस्ते दाम पर।

इस कीटनाशक को मोहाली ​के सेंटर ऑफ इनोवेटिव एंड अप्लाइड बायोप्रोसेसिंग (सीआईएबी) की डॉ जयीता भौमिक और उनकी टीम ने दो साल में तैयार किया है। इस नैनो बायो पेस्टीसाइड की टेक्नोलॉजी का पेटेंट फाइल हो चुका है और टेक्नोलॉजी को ट्रांसफर किया जा चुका है।

माना जा रहा है कि पंजाब में 51 मिलियन टन और हरियाणा में 22 मिलियन टन पराली और नाड़ निकलती है। यह नहीं जलेगी तो पर्यावरण साफ रहेगा। इससे खेतों की मिट्टी उपजाऊ बनी रहेगी। हर साल हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोगों की बड़ी आबादी को साफ हवा में सांस लेने की सुविधा रहेगी।

धान-गेहूं अवशेष को किसान इसलिए आग लगाते हैं क्योंकि उन्हें अगली फसल के लिए जल्दी होती है। इससे पर्यावरण के नुकसान तो होता ही है, मिट्टी कमजोर होने से पैदावार में कमी आती है।

इस बारे में संस्था के निदेशक प्राे अश्वनी पारीक का कहना है कि इस तकनीक के जरिए पराली और नाड़ के हल के साथ किसानाें की आय बढ़ेगी और पर्यावरण भी लाभ मिलेगा। इसका उपयोग नैनो बायो फर्टिलाइजर में भी कामयाब है। प्रो, पारीक ने बताया कि इस तकनीक के जरिए पराली और नाड़ के हल के साथ किसानाें की आय बढ़ेगी और पर्यावरण का भी लाभ मिलेगा। इसका उपयोग नैनो बायो फर्टिलाइजर में भी कामयाब है।

About

Check Also

पंजाब: मान-सरकार ने मानी किसानों की मांग, लोन के 'वन टाइम सेटलमेंट' पर बनी सहमति

पंजाब: मान-सरकार ने मानी किसानों की मांग, लोन के ‘वन टाइम सेटलमेंट’ पर बनी सहमति

सरकार की तरफ से मांगों पर सहमति जताए जाने के बाद शुक्रवार को किसान धरना …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *