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बिहार और यूपी के मजदूरों की पीठ पर टिकी है पंजाब की खुशहाल|

पंजाब की कृषि अर्थव्यवस्था में प्रवासी मजदूरों के योगदान का इसका अंदाजा पंजाब कृषि विभाग के इंडियन एक्सप्रेस में छपी क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट्स (सीसीई) के रिपोर्ट के आधार पर भी लगा सकते हैं| महामारी के दौरान पहले लॉकडाउन में तकरीबन 15 लाख मजदूरों ने वापस अपने घर लौटने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था| सीसीई की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में साल 2020 के मुकाबले नंवबर 2021 तक धान की खरीद में 4 प्रतिशत की कमी देखी गई| इसके अलावा धान की बुवाई के रकबे में भी पहले के मुकाबले लगभग 5 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी|

महामारी की वजह से पंजाब में किसानों को मजदूरों की भारी कमी झेलनी पड़ी थी| स्थानीय मजदूरों ने अपने रेट बढ़ा दिए थे| ऐसे में लॉकडाउन खत्म होते ही वापस गए मजदूरों को बुलाने की कवायद शुरू हो गई थी| जिसके लिए उत्तर प्रदेश और बिहार के दूर-दराज के क्षेत्रों में इन्हें ले आने के लिए काफी संख्या में बस और ट्रक भेजे गए थे|

देविंदर शर्मा कहते हैं कि एक अनुमान के मुताबिक हर साल उत्तर प्रदेश और बिहार से तकरीबन 20 लाख मजदूर पंजाब आते हैं| जिसमें से तकरीबन 12 लाख मजदूर सीधे तौर पर कृषि से जुड़े होते हैं| उनमें भी लगभग 6 लाख के आसपास मजदूर विशेष तौर पर गेंहू की कटाई और धान के रोपाई के सीजन में ही आते है| बाकी बचे अन्य मजदूर कृषि मंडियों और अन्य छोटे-छोटे कृषि व्यवसायों में काम करते हुए अपना जीवनयापन करते हैं|

टी वी चैनल आज तक की एक रिपोर्ट के अनुसार : हर साल धान के सीजन की शुरुआत होते ही पंजाब के सभी शहरों में मजदूरों के लिए बड़े-बड़े कैंप लगाए जाते हैं. इन कैंपों में माध्यम से किसानों को मजदूर बेहद आसानी से मिल जाते हैं| इन मजदूरों को एक एकड़ में धान की रोपाई के लिए तकरीबन 2500 से 3000 रुपये दिया जाता है| इसके अलावा मजदूरों को खाने मजदूरों को खाने और रहने की व्यवस्था किसान अपने गांव में ही करता है. पांच से छह मजदूर मिलकर पूरे दिन में 1 से डेढ़ एकड़ में धान की रोपाई का काम कर लेते हैं| इस तरह से एक मजदूर एक दिन में करीब 7 से 8 सौ रुपये की कमाई कर लेता है| पंजाब में धान रोपाई का काम जून से लेकर जुलाई तक चलता है| इस तरह से डेढ़ से दो महीने में एक मजदूर 40 से 50 हजार रुपये की कमाई आराम से कर लेता है, जो अपने गांव में रहकर कमाना मुश्किल है|

कृषि आंदोलन में भी इन मजदूरों की अहम भूमिका रही है| किसानों के साथ कई सारे मजदूर भी दिल्ली के बॉर्डर पर तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ बैठे हुए थे| मजदूरों का तर्क था कि अगर इनकी जमीन बची रहेगी तो ही हमारा खर्चा चल सकेगा| कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसान आंदोलन की सफलता के पीछे भी इन मजदूरों का बेहद अहम हाथ था| जब पंजाब के स्थानीय किसान निश्चिंत होकर दिल्ली की सीमा पर बैठे थे तो इन्ही प्नवासियों ने पूरी तरह खेती की बाडगोर संभाल कर रखी थी|

देविंदर शर्मा के कहते हैं कि पंजाब के किसान और मजदूर एक दूसरे के पूरक हैं| कई सारे मजदूर यहां आते हैं और हमेशा के लिए बस जाते हैं| जाहिर सी बात है उनको वोटिंग का अधिकार भी मिला होगा| इसके अलावा इन मजदूरों के परिवार की महिलाएं और बच्चे यहां के किसानों के यहां घरेलू कामों में भी अपना हाथ बंटाते हैं| यहां के लोग इन मजदूरों को अपने परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं| ऐसे में जिन क्षेत्रों में प्रवासियों की संख्या अधिक है वहां कांग्रेस को काफी ज्यादा नुकसान झेलना पड़ सकता है|

पंजाब शुरुआत से ही उद्योगों के लिए एक बड़ा केंद्र रहा है| इन उद्योगों में उत्तर प्रदेश और बिहार के कई सारे वर्कर्स काम करते हैं| इसके अलावा पंजाब होजरी का भी बड़ा बाजार माना जाता है जहां पर प्रवासी कामगार काफी संख्या में काम करते हैं| ऐसे में कह सकते हैं कि पंजाब में अर्थव्यवस्था को आगे पहुंचाने में काफी हद तक यूपी-बिहार के ‘भइये लोगों’ का हाथ है.

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