यूरोपियन यूनियन के मानकों पर खरा उतरने के बाद कांगड़ा चाय को जीआई टैग मिला है | इससे कांगड़ा में चाय वालों को खासी राहत मिली है |
कांगड़ा चाय को जी.आई. टैग मिलने पर अब इस खास चाय की बेहतरीन खुशबू यूरोप के देशों में बिखरेगी | अब तक कांगड़ा की चाय से करीब चार हजार किलोग्राम चाय का निर्यात कोलकाता तक होता है | अब, GI टैग मिलने के बाद कांगड़ा से चाय सीधा यूरोपियन देशों में निर्यात हो सकेगी |
गौरतलब है कि कांगड़ा चाय हरी और काली दोनों तरह की होती है | काली चाय का स्वाद मीठा और हरी चाय का स्वाद सुगंधित लकड़ी की तरह होता है | यहां तक कि कोरोना काल में कुछ एक्सपर्ट्स ने इस चाय में वायरस से लड़ने की क्षमता का दावा तक कर दिया था |
हिमाचल प्रदेश की चाय को जी.आई. टैग यूरोपियन यूनियन से मिलने से कांगड़ा चाय उत्पादकों की आर्थिकी मजबूत होगी | बता दें कि अब तक कांगड़ा चाय सिर्फ कोलकाता तक ही निर्यात होती है | लेकिन अब जी.आई. टैग मिलने के बाद हिमाचल की चाय यूरोप तक निर्यात हो सकेगी |
प्रदेश में इस समय लगभग 24 सौ हैक्टेयर रकबे में चाय बागान हैं | आज से चार दशक पूर्व करीब तीन हजार हैक्टेयर क्षेत्र में चाय बागान थे | वर्ष 1990 से लेकर 2002 तक कांगड़ा चाय उद्योग बुलंदियों पर था और हर साल यहां पर दस लाख किलो से अधिक चाय का उत्पादन हो रहा था | चाय उत्पादकों के प्रयासों से 1998-99 में चाय उत्पादन के सभी रिकार्ड टूट गए और उस साल 17,11,242 किलो चाय का उत्पादन हुआ |
कांगड़ा चाय का निर्यात जर्मनी, फ्रांस , इंग्लैड, किया जाता है | यूरोपियन जीआई टैग के लिए हिमाचल सरकार द्वारा ही बहुत प्रयास किए गए है | बता दें कोरोना काल में दावा किया गया था कि कांगड़ा टी कोरोना से लड़ने की क्षमता रखती है |