जालंधर के पांच युवाओं ने कृषि अवशेष (पराली व अन्य) से कोयला बनाने की तकनीक विकसित कर पराली संकट के समाधान के क्षेत्र में बड़ी कामयाबी हासिल की है। यह तकनीक काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) और नेशनल इंस्टीट्यूट आफ बायो एनर्जी के विशेषज्ञों के सहयोग से विकसित की गई है।
पंजाब सरकार के आंकड़ों के अनुसार पंजाब में 180 से 200 लाख टन पराली हर साल निकलती है। यह तकनीक इस संकट से मुक्ति दिला सकता है। इसी तरह हरियाणा में 55 लाख टन पराली हर साल निकलती है। यदि इस तकनीक प्रदेश सरकारें अपने राज्यों में बढ़ावा देती हैं, तो पराली का निस्तारण किया जा सकता है।
इस तकनीक से धान की पराली, गन्ने के अवशेष व अन्य फसलों के अवशेष का इस्तेमाल कर कोयला बनाया जा रहा है। दस साल के शोध के बाद नेशनल इंस्टीट्यूट आफ बायो एनर्जी के सहयोग से जालंधर में यह प्लांट स्थापित किया गया है। नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन लिमिटेड ने भी इस प्लांट में रुचि दिखाई है। उनके विशेषज्ञों ने प्लांट की तकनीक को सराहा है। इस तकनीक को विकसित करने वाली टीम का नेतृत्व कर रहे उद्योगपति अजय पलटा ने बताया कि हम दस वर्षों से इसपर काम कर रहे हैं। हमने पांच साल पहले इससे कोयला बनाना शुरू कर दिया था, लेकिन उस समय प्लांट में कुछ कमियां रह गई थीं। अब इन्हें दूर कर लिया गया है। अगले माह तक मशीन को सार्वजनिक कर दिया जाए|
सीएसआइआर से संबंधित एनपीएल (नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी) ने इस प्लांट में बने कोयले की टेस्टिंग कर ली है। 30 फीट चौड़े व 50 फीट लंबे इस प्लांट के जरिए प्रतिदिन 10 टन कृषि अवशेष से कोयला बनाया जा सकता है। बठिंडा के लहरा मोहब्बत थर्मल प्लांट के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर डीपी गर्ग का कहना है कि यह प्रोजेक्ट एनटीपीसी के निर्देशन में ही चल रहा है। हर थर्मल पावर प्लांट को कृषि अवशेष से तैयार पांच प्रतिशत कोयला लेना अनिवार्य होगा। पंजाब में आने वाले समय में ऐसे कई प्लांट लगेंगे।
रूपनगर थर्मल प्लांट के पूर्व डेस्क कंट्रोलर सुखदेव सिंह कहते हैं कि छोटे थर्मल पावर प्लांटों के लिए यह कोयला कारगर साबित होगा। बड़े प्लांटों की मांग बहुत ज्यादा होती है। उनके मानकों पर यह सही बैठा तो फायदेमंद साबित हो सकता है। इसे प्रदूषण तो कम होगा ही किसानों की आय भी बढ़ेगी।
प्लांट तैयार करने वाले अजय, गोविंद, साहिल, योगेश मरवाहा व राहुल सहगल ने दावा किया है कि उनका प्लांट कृषि अवशेष से बिना नमी के कोयला बनाने वाला दुनिया का पहला प्लांट है। उन्होंने बताया कि कनाडा व कैलिफोर्निया में वहां की सरकार की तरफ से प्लांट लगाने का आफर दिया गया है, लेकिन अभी हम इसे देश में ही शुरू करना चाहते हैं। पांच वर्षों में विभिन्न प्रकार के कृषि अवशेषों से कोयला तैयार करके देख रहे हैं। अब संतुष्ट हुए हैं।