बाड़मेर क्षेत्र सौभाग्य से भारत का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ खजूर की मेडजूल किस्म को सफलतापूर्वक उगाया जा सका है, और पिंड पेड़ों पर पकता है। पश्चिमी राजस्थान में खजूर के फल खाड़ी देशों की तुलना में एक महीने पहले पक जाते हैं, जिनका अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपना फायदा है। इस जिले में उपलब्ध खारे पानी को खजूर सहन कर सकता है, जहां कोई अन्य फसल नहीं उगाई जा सकती है।
पौधों की उपलब्धता की चुनौती को पूरा करने के लिए, लगभग 3,432 खजूर के पौधों की किस्मों – बरही, खुनीज़ी, खलास और मेडजूल को टिश्यू कल्चर तकनीक से प्राप्त किया गया और वर्ष 2010-11 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत बाड़मेर के किसानों को प्रदान किया गया।
एक हेक्टेयर मे लगभग 156 खजूर के पौधे पंक्ति-से-पंक्ति की दूरी पर और पौधे-से-पौधे 8 मीटर के हिसाब से लगाए गए। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा तकनीकी जानकारी प्रदान की गई। खजूर के पौधे पर सब्सिडी के साथ-साथ बागवानी विभाग ने 2 साल के लिए पौधों की खेती और रखरखाव के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की है।
बाड़मेर में पौधों के अस्तित्व के लिए और पानी की कमी को देखते हुए ड्रिप सिंचाई प्रणाली का प्रावधान अनिवार्य था। बाड़मेर में खजूर की खेती को बढ़ावा देने के लिए, बागवानी विभाग, राजस्थान सरकार ने 98.00 हेक्टेयर क्षेत्र में सरकारी खजूर फार्म और खजूर के लिए उत्कृष्टता केंद्र विकास योजना के तहत स्थापित किया है। तथा सरकारी मशीनीकृत फार्म के तहत खजूर फार्म, खारा, बीकानेर में 38.00 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थापित किया गया है।
रेगिस्तानी क्षेत्र के किसानों ने 2010-11 में खजूर की खेती के साथ प्रयोग करना शुरू किया। शुरुआत में 11 किसानों ने बाड़मेर में 22 हेक्टेयर में फलों की फसल उगाई और 2014 में पहली फसल प्राप्त की। बाजार से अच्छी प्रतिक्रिया से उनकी आय में वृद्धि हुई। हर साल खजूर की खेती के तहत क्षेत्र में वृद्धि के साथ, यह 2020-21 में 156.00 हेक्टेयर तक पहुंच गया है। बाड़मेर में खजूर का कुल उत्पादन लगभग 150 से 180 टन प्रति वर्ष है।
किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार के साथ-साथ खजूर की खेती ने पोषक तत्वों की कमी को दूर करने में भी मदद की है। बाजारों में इसकी आसान उपलब्धता ने आयात पर निर्भरता को भी कम कर दिया है, जिससे विदेशी मुद्रा को बचाने में मदद मिली है।