बनासकांठा जिले और कच्छ जिले ने खजूर उत्पादन के मामले में अपनी पहचान बनाई है। यह दोनों जिले खजूर के उत्पादन के मामले में भी आगे हैं। दोनों जिलों में किसानों ने देशी-विदेशी किस्मों की हजारों मीट्रिक टन खजूर के उत्पादन से वैश्विक बाजार में पहचान कायम की है।
बनासकांठा जिले में थराद के समीप बुढरपुर गांव के प्रगतिशील किसान अणदाभाई भेमजी पटेल ने वर्ष 2001 में खजूर की खेती के लायक पानी की व्यवस्था होने के बाद अच्छी आवक वाली खेती करने का विचार किया। दो भाइयों के साथ खारेक की सफल खेती करने वाले अणदाभाई के अनुसार खजूर की बुवाई के लिए खड्डा खोदकर गोबर का खाद डालकर खजूर के 300 पौधे रोपे।
करीब 3800 रुपए के एक पौधे के लिए सरकार से 1250 रुपए का अनुदान मिला। तीन वर्ष बाद एक पेड़ से 9 लाख रुपए की शुद्ध आवक हुई। अगले वर्ष करीब 15 लाख रुपए की आवक हुई। बाद में एक वर्ष में 36 हजार किलो खजूर से प्रति किलो 60 से 80 रुपए के हिसाब से करीब 20-25 लाख रुपए की आवक हुई|
टपक सिंचाई पद्धति से खजूर की खेती करने से पानी की बचत होती है। उनके अनुसार सफल कृषक बनने के लिए अनेक रास्ते हंैं लेकिन इसके लिए भी मेहनत व तकनीक के सहारे चलना पड़ता है।
गुजरात सरकार से सरदार कृषि अवार्ड भी उन्हे प्राप्त हो चुका है। उनके अनुसार इजराइली बाराही खजूर की खेती पूर्णतया आर्गेनिक पद्धति से की जाती है। यह खजूर स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होती है। अणदाभाई के अनुसार खजूर के पौधों के बीच में अन्य बागवानी संबंधी खेती भी संभव है।
इसी प्रकार बनासकांठा जिले में बनासकांठा की थराद तहसील के भीमपुरा गांव के निवासी अश्विन चेलाभाई पटेल ने वर्ष 2010 में भारतीय सेना में नौकरी हासिल की और देश सेवा के बदले वर्ष 2012 में स्वैच्छा से सेना की नौकरी छोड़ी और गांव लौटकर इजरायली खजूर (खारेक) के उत्पादन के क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाने को प्राथमिकता दी। ब्रिटेन, अमरीका सहित कई देशों में खजूर निर्यात होते हैं।
बनासकांठा जिले की थराद तहसील के ही गगाणा गांव में 20 एकड़ जमीन के मालिक वशराम रासंगभाई पटेल खेती के साथ पशुपालन के व्यवसाय से भी जुड़े हैं। उन्होंने भी इजरायली बाराही खजूर की खेती की। इसी प्रकार बनासकांठा जिले की वाव तहसील के खीमाणावास गांव के निवासी व सेवानिवृत्त मुख्य जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अरुण आचार्य ने सेवानिवृत्ति के बाद खजूर की खेती की।
कच्छ जिले में खजूर के व्यापारी जिग्नेशभाई के अनुसार एक बार खजूर का पौधा रोपने के बाद 70 से 100 वर्ष तक खजूर के फल प्राप्त किए जाते हैं। सामान्यतया फरवरी व मार्च महीने में फूल आते हैं और जून-जुलाई महीने में फल लगते हैं। एक सीजन में करीब 1500 टन खजूर प्राप्त की जा रही है।
जिले के बागवानी कार्यालय के अनुसार जिले में 18 हजार हेक्टेयर जमीन पर खजूर की खेती की जा रही है। जिले में मुंद्रा, अंजार, भुज और मांडवी तहसीलों में बड़े पैमाने पर खजूर का उत्पादन होता है। कच्छ जिले में खजूर की व्यावसायिक खेती भी होती है।