उत्तराखंड में वर्ष 2030-31 तक सगंध खेती का क्षेत्रफल 30 हजार हेक्टेयर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। सगंध खेती राज्य में परंपरागत फसलों के स्थान पर एक बड़े विकल्प के रूप में उभरी है। लैमनग्रास, डेमस्क रोज, पामारोजा, मिंट, तुलसी, टिमरू, तेजपात जैसी सगंध फसलें यहां की परिस्थितियों के अनुकूल होने के साथ ही लाभकारी भी हैं।
मौसम के अनुरूप स्वयं को ढालने की क्षमता वाली इन फसलों को वन्यजीव भी क्षति नहीं पहुंचाते। इनसे तेल तैयार कर परिवहन में आसानी होती है और दाम भी बेहतर मिलते हैं। राज्य में अब तक 109 क्लस्टर में सगंध खेती हो रही है, जिनसे लगभग 24 हजार किसान जुड़े हैं।
क्षेत्रफल आठ हजार हेक्टेयर के लगभग है। किसान भी इसमें रुचि ले रहे हैं। इसे देखते हुए ही राज्य में चमोली, अल्मोड़ा, चंपावत, नैनीताल, ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार व पौड़ी जिलों में सगंध घाटियां विकसित करने की मुहिम गत वर्ष से चल रही है।
ये सगंध घाटियां डेमस्क रोज, तेजपात, टिमरू, लैमनग्रास, मिंट समेत अन्य फसलों से संबंधित हैं। इस साल की शुरुआत में सरकार ने सगंध घाटियों की कार्ययोजना तैयार करने का निश्चय किया। फरवरी से इस पर काम चल रहा है।
सगंध पौधा केंद्र से मिली जानकारी के अनुसार, कार्ययोजना में कई बिंदु शामिल किए जा रहे हैं। ऐसे में इसे अंतिम रूप देने में अभी कुछ समय और लगेगा। यद्यपि, सगंध घाटियों के लिए चयनित जिलों के क्षेत्रों में कदम काफी पहले से उठाने प्रारंभ कर दिए गए हैं।