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मध्य प्रदेश : हरे मटर की ‘नब्ज’ जांचेंगे विशेषज्ञ, कृषि विवि में लगेगी ओपीडी

सूबे के जबलपुर जिले में सवा तीन लाख टन मटर का उत्पादन होता है। ऐसे में फसल को ठंड और पाले से बचाने की चुनौती सबसे अहम होती है। अब जवाहरलाल नेहरू कृषि विवि में नवाचार के तहत मटर के लिए ओपीडी लगाई जाएगी ताकि मटर उत्पादक किसान को उचित परामर्श सही समय पर मिल सके।

जिले में हरे मटर के बढ़ते उत्पादन और क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की इस पर निर्भरता को सशक्त करने के लिए कृषि विशेषज्ञ विशेष ओपीडी लगाएंगे।

मटर के बढ़ते उत्पादन को देखते हुए पौधों पर रोग न लगे इसके लिए मटर और चने की फसल के लिए अलग से ओपीडी तैयार की गई है। इसके लिए 6 विशेषज्ञों की टीम तैनात की गई है। ओपीडी में फसल का नमूना, फोटो, वीडियो के आधार पर प्राथमिक समाधान से लेकर फील्ड निरीक्षण जैसी सेवाएं उपलब्ध रहेंगी।

जिले का मटर देशभर में जा रहा है, ऐसे में गुणवत्तापूर्ण मटर की सप्लाई से जिले की ब्रांड वेल्यू भी बढ़ेगी। गौरतलब है कि मटर उत्पादन के क्षेत्र में जबलपुर बड़े व्यापारिक केंद्र के रूप में सामने आया है। जिले में करीब 3.25 लाख टन से अधिक मटर का उत्पादन होता है। इसे गति देने यह अभिनव पहल की गई है।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार ठंड बढऩे के साथ मटर में बुकनी रोग लगने की संभावना होती है। इससे पौधों की पत्तियों के खराब होने के साथ मटर की फल्लियां भी प्रभावित होती हैं। फिलहाल जिले में ऐसी स्थिति नहीं है लेकिन समय रहते सावधानी बड़े नुकसान से बचा सकती है। चने की फसल में कॉलर रॉट रोग की संभावना ठंड में बढ़ती है। जिसे भी बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

मटर को रोगों से बचाने के लिए किसानों को तापमान की निगरानी करनी चाहिए। क्योंकि रोग के लिए ख़तरनाक संकेत है —

– 16 डिग्री से कम तापमान होना

– 60 फीसदी से कम आद्रता होना

वैज्ञानिकों ने बताए उपाए

-खेत में नमी आवश्यकता से अधिक न रखें।

– खड़ी फसल रोग फैलाव रोकने ट्राइकोडर्मा विरिडी 2-3 मिलीलीटर प्रति लीटर दवा का छिडक़ाव करें।

-मेनकोजिम 1 ग्राम प्रति लीटर या टेबुकनोजोल 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से जड़ क्षेत्र में छिडक़ाव करें।

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