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उत्तर प्रदेश : पांच साल में मक्का का उत्पादन दोगुना करने की योजना

उत्तर प्रदेश में सरकार ने मक्का का उत्पादन पांच साल में दोगुना करने का लक्ष्य रखा है| फिलहाल 2021-2022 में मक्का का उत्पादन 14.67 लाख मीट्रिक टन था| पांच साल में इसे बढ़ाकर 27.30 लाख मीट्रिक टन करने का लक्ष्य है| इसके लिए रकबा बढ़ाने के साथ प्रति हेक्टेयर प्रति क्विंटल उत्पादन बढ़ाने पर भी बराबर का जोर होगा|

मालूम हो कि मक्के का प्रयोग ग्रेन बेस्ड इथेनॉल उत्पादन करने वाली औद्योगिक इकाइयों, कुक्कुट एवं पशुओं के पोषाहार,
दवा, कास्मेटिक, गोद, वस्त्र, पेपर और एल्कोहल इंडस्ट्री में भी इसका प्रयोग होता है| इसके अलावा मक्के को आटा, धोकला, बेबी कार्न और पाप कार्न के रूप में तो ये खाया ही जाता है. किसी न किसी रूप में ये हर सूप का अनिवार्य हिस्सा है|

आने वाले समय में इनके विस्तार के साथ ही मक्के की मांग भी बढ़ेगी| इस बढ़ी मांग का अधिकतम लाभ प्रदेश के किसानों को हो इसके लिए सरकार मक्के की खेती के प्रति किसानों को जागरूक करेगी| उनको खेती के उन्नत तौर तरीकों की जानकारी देने के साथ सीड रिप्लेसमेंट (बीज प्रतिस्थापन) की दर को भी बढ़ाएगी| किसानों को मक्के की उपज का वाजिब दाम मिले इसके लिए सरकार पहले ही इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में ला चुकी है|

मक्के में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व भी पाए जाते हैं| इसमें कार्बोहाइड्रेड, शुगर, वसा, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और मिनरल मिलता है| इस लिहाज से मक्का की खेती कुपोषण के खिलाफ जंग साबित हो सकती है| इन्हीं खूबियों की वजह से मक्के को अनाजों की रानी कहा गया है.
उन्नत खेती के जरिये प्रति हेक्टेअर 100 क्विंटल उपज संभव है. उत्तर प्रदेश में 2021-2022 में 6.91 लाख हेक्टेयर में मक्का की खेती हुई| और 14.67 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ| प्रदेश में इसकी उपज बढाने की भरपूर संभावना है|

देश और उत्तर प्रदेश की प्रति हेक्टेयर औसत उपज क्रमशः 2600 एवं 1788 किलोग्राम है| वर्ष 2021-22 में यह बढ़कर 2163 कुंतल हो गई. सर्वाधिक उत्पादन वाले तमिलनाडु की औसत उपज 5939 क्विंटल है| एक्सपर्ट्स की माने तो प्रति हेक्टेयर औसत उपज 100 क्विंटल तक संभव है| अमेरिका में प्रति हेक्टेअर उत्पादन करीब 960 क्विंटल है| ऐसे में खेती के उन्नत तरीके से उपज बढ़ाने की भरपूर संभावना है|

मक्का की खेती में एक बात का खयाल रखें कि फूल आने के समय तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो| इससे अधिक तापमान होने पर दाने नहीं पड़ते| अगर सिंचाई की सुविधा हो तो फरवरी के दूसरे हफ्ते में आलू, सरसों और सब्जी की फसलों से मक्का बो सकते हैं| साथ में सह फसल के रूप में जायद की मूंग और उड़द की भी फसल ले सकते हैं| इससे सिर्फ 70-80 दिन में प्रोटीन से भरपूर दलहन की एक अतिरिक्त फसल तो मिलेगी ही| दलहनी फसलों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिर करने की खूबी का जो लाभ भूमि को मिलेगा, वह अतिरिक्त होगा|

क्रील सिस्टम इनीसिएटिव फार साउथ एशिया (सीसा) के वैज्ञानिक डा.अजय के अनुसार किसान क्षेत्र के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार उन्नत प्रजातियों की बोआई करें| डंकल डबल, कंचन 25, डीकेएस 9108, डीएचएम 117,एचआरएम-1,एनके 6240, पिनैवला, 900 एम और गोल्ड आदि प्रजातियों की उत्पादकता ठीकठाक है| वैसे तो मक्का 80-120 दिन में तैयार हो जाता है| पर पापकार्न के लिए यह सिर्फ 60 दिन में ही तैयार हो जाता है|

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