अरबी की खेती खरीफ सीजन में की जाती है| इसकी बुवाई का काम मई से जून के बीच कर लिया जाता है, जिससे मानसून की बारिश पड़ने पर फसल में सही अंकुरण मिल सके| मानसून में अरबी की खेती करने से कई फायदे मिलते हैं| इस दौरान सिंचाई के लिये अलग से खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि बारिश के चलते अपने आप प्राकृतिक सिंचाई का काम हो जाता है| जिन इलाकों में कम बारिश हो रही है| चाहें तो 10 से 12 दिन के अंतराल पर शाम के समय हल्की सिंचाई का काम कर सकते हैं|
अरबी की फसल में सिंचाई के अलावा पोषण प्रबंधन, कीट-रोग नियंत्रण और खरपतवार प्रबंधन के कार्य भी समय रहते कर लेना चाहिये|
अकसर बारिश के साथ अरबी की फसल में खरपतवार भी अग जाते हैं, जो अरबी के कंदों को बढ़ने से रोकते हैं इस समस्या की रोकथाम के लिये बुवाई के 20 से 25 दिनों के अंदर फसल में निगरानी और निराई-गुड़ाई का काम कर लें|
कृषि विशेषज्ञों की मानें तो फसल में अच्छी पैदावार के लिये कम से कम 2-3 बार निराई-गुड़ाई और फसल पर मिट्टी चढ़ाने का काम भी कर लें|
इस समय अरबी की फसल में तेजी से विकास होता है, लेकिन अरबी के लंबे तनों से समस्या बढ़ सकती है, इसलिये पौधे में दो तनों तो छोड़कर बाकी के तनों की कटाई-छंटाई कर दें|
अरबी में रोग नियंत्रण :
इन दिनों अरबी की फसल में झुलसा रोग की संभावनायें ज्यादा होते हैं| झुलसा रोग लगने पर अरबी के पौधों की पत्तियों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं और पत्तियां गलकर नीचे गिर जाती हैं| इससे अरबी की क्वालिटी पर भी बुरा असर पड़ता है|
अरबी में झुलसा रोग की रोकथाम के लिए फसल में हर 15-20 दिन के अंतराल पर मैकोजेब दवा की 2.5 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़कें|
इस समस्या की रोकथाम के लिये फसल चक्र में भी बदलाव करते रहना चाहिये|
अरबी में कीट नियंत्रण : अरबी की फसल में बढ़वार के समय सूंडी व मक्खी कीट का खतरा भी मंडराता है| ये कीड़े अरबी की पत्तियों को चबा कर खराब कर देते हैं, जिससे पत्तों की उपज और फसल की क्वालिटी को काफी नुकसान होता है|
अरबी की फसल में सूंडी और मक्खियों के संकट को रोकने के लिये 40% ट्रायजोफास ई.सी. नामक दवा की 2 मिली मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें|
किसान चाहें तो नीम से बने जैविक कीटनाशक और एंजाइंम्स का प्रयोग कर सकते हैं|
अरबी की फसल में अच्छी पैदावार के लिये उसमें जैविक गुणों से भरपूर जीवामृत भी डाल सकते हैं.