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@5 दिल्ली में मतदाताओं को सुनने को मिलेगी दो पूर्वांचली उम्मीदवारों की वैचारिक जंग

दिल्ली में मतदाताओं को सुनने को मिलेगी दो पूर्वांचली उम्मीदवारों की वैचारिक जंग

आमतौर पर इस बात को लेकर चर्चा रहती है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को लेकर भाजपा चिढ़ती है। कारण विचारों में मतभेद को लेकर है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नेता रहे कन्हैया कुमार को कांग्रेस ने दिल्ली के सत्ता संग्राम में उतार दिया है। कन्हैया उत्तर-पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर भाजपा के दो बार से सांसद मनोज तिवारी को टक्कर देंगे। पूर्वांचल बहुल इस सीट पर पहली बार दो पूर्वांचलियों में मुकाबला होगा। दोनों प्रत्याशियों की अपनी-अपनी खासियतों की बदौलत पूरे देश व युवाओं में इस सीट को लेकर दिलचस्पी रहेगी। दरअसल, दोनों नेताओं की युवाओं में काफी पैठ है। इस सीट पर विचारधारा की लड़ाई भी देखने को मिलेगी। कन्हैया पूर्वांचल के साथ वामपंथ विचारधारा के नेता हैं। वहीं, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़े मनोज तिवारी भाजपा की विचारधारा के साथ हैं और दो बार से सांसद हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराया था। अभी तक नई दिल्ली से दिवंगत सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज के भाजपा प्रत्याशी बनने से यह सीट आकर्षण का विषय थी, अब उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर भी रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा। पूर्वांचली छात्र नेता। अच्छे वक्ता भी हैं
पिछले चुनाव में हारने के बावजूद चर्चा में रहेगठबंधन के प्रत्याशी होने से अल्पसंख्यक वोटरों को भी करेंगे आकर्षित। युवाओं में भी पहचान। कन्हैया कुमार का एक पक्ष यह भी है कि छात्र राजनीति से ही वामपंथ का चेहरा कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता नहीं। आप की विचारधारा से भी प्रभावित नहीं है

जहां तक भाजपा उम्मीदवार मनोज तिवारी का पक्ष है तो इसी सीट से दो बार से सांसद पूर्वांचलियों में अच्छी पकड़ व अच्छे वक्ता हैं। क्षेत्र में विकास कार्य में उनका योगदान रहा है छवि राष्ट्रीय नेता की और युवाओं भी अच्छी पकड़ है भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को चुनाव में भाजपा से निराश मतदाताओं और उनके स्थानीय संपर्क का अभाव बना रहेगा। कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी के हिमायती वोटरों का लाभ कांग्रेस उम्मीदवार का मुकाबला रोचक व दमदार बनाने में मददगार बनेगा।

उत्तर पूर्व दिल्ली क्षेत्र से लोकसभा चुनाव का टिकट प्राप्त करने वाले कन्हैया लाल ने वर्ष 2012 में पटना के कॉलेज ऑफ कॉमर्स में दाखिला लिया और ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआईएसएफ) के सदस्य बने। जेएनयू की छात्र राजनीति से राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। वर्ष 2015 में कन्हैया कुमार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। इस दौरान वर्ष 2016 में कथित देश विरोधी नारेबाजी का आरोप लगने पर वह विवादों आ गए थे। वर्ष 1987 में बिहार के बेगूसराय में जन्मे कन्हैया ने पांच साल पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के टिकट पर अपने निवास क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ा था। उन्हें केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने चार लाख से अधिक वोटों से हराया था। इसके बाद कन्हैया वर्ष 2021 में कांग्रेस में शामिल हो गए और वर्ष 2023 में उन्हें कांग्रेस कार्यसमिति में शामिल किया गया।

राजधानी का सबसे ज्यादा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण वाला क्षेत्र उत्तर-पूर्वी दिल्ली 2020 में हुए सांप्रदायिक दंगों की वजह से पूरी दुनिया में चर्चित रहा था। दंगों के बाद इन क्षेत्रों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण सबसे ज्यादा देखने को मिला था। इस लोकसभा क्षेत्र में सीलमपुर, मुस्तफाबाद, बाबरपुर और करावल नगर जैसे क्षेत्र आते हैं, जहां मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा ज्यादा है। पूरे लोकसभा क्षेत्र में वोटरों के लिहाज से 21 फीसदी वोटर मुस्लिम समुदाय से आते हैं। इसलिए संभावना यही है कि इस बार के चुनाव में भी धार्मिक ध्रुवीकरण का मुद्दा काफी जोर पकड़ सकता है।

 

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