ओडिशा में आलू की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। आलू की खेती के लिए क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम के तहत आलू की खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने किसानों को प्रति एकड़ 58,000 रुपये की सब्सिडी प्रदान करने की योजना बनाई है। आलू की खेती के लिए दी जाने वाली यह सब्सिडी बीज के लागत के साथ-साथ पौधौं के रख-रखाव क लिए भी होगी। राज्य कृषि विभाग ने उन जिलों में आलू की खेती का रकबा बढ़ाने की योजना बनाई है जिन जिलों में कोयले का भंडार नहीं है। इन जिलों में पिछले साल के 5000 हेक्टेयर लक्ष्य की तुलना में 11000 हेक्टेयर में आलू की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है।
राज्य में आलू की खेती को बढ़ावा देने के तहत प्रति हेक्टेयर आलू की खेती की कुल लागत 1.45 लाख रुपए अनुमानित है। कृषि विभाग के अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक खेती की कुल लागत का 40 फीसदी किसानों को अनुदान दिया जाएगा, जो प्रति हेक्टेयर 58,000 रुपए है।
आलू की खेती पर किसानों को दी जाने वाली यह सब्सिडी दो चरणों में दी जाएगी। इसके तहत बीज आपूर्तिकर्ता को प्रति हेक्टेयर 43,875 रुपये बीज की सब्सिडी दी जाएगी, जबकि पौधों की देखभाल के लिए किसानों को 14,125 रुपये की सब्सिडी की जाएगी। पौधौं की देखभाल के लिए सब्सिडी की राशि आलू की रोपाई और पौधे निकलने के 21 दिन बाद डीबीटी के माध्यम से की जाएगी।
आलू सब्जियों एवं मसालों के विकास योजना के तहत सब्सिडी राज्य योजना की आवंटित धनराशि से जारी की जाएगी। कृषि विभाग ने ओडिशा राज्य बीज निगम के माध्यम से 1.65 लाख क्विंटल प्रमाणित आलू के बीज खरीदे हैं। पहली बार, बागवानी निदेशालय ने नवंबर के पहले सप्ताह में प्रमाणित आलू के बीज की सफलतापूर्वक आपूर्ति की है। निदेशालय ने 2023 के खरीफ सीजन में कोरापुट, रायगडा और मलकानगिरी जिलों को रिकॉर्ड 64,000 क्विंटल प्रमाणित आलू के बीज की आपूर्ति की थी, जहां कंद का बंपर उत्पादन हुआ है। उन तीन जिलों से ख़रीफ़ आलू की संकटपूर्ण बिक्री की सूचना मिली है जहां किसानों को आलू भंडारण में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
अपना लगभग 90 प्रतिशत आलू खरीदने के लिए पड़ोसी पश्चिम बंगाल पर निर्भर रहना पड़ता है। राज्य सरकार ने कंद उत्पादन एवं आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कोई विशेष पहल नहीं की। इसलिए, आलू की खेती बहुत कम क्षेत्रों में सीमित पैमाने पर की जाती है, जबकि घर में उगाए जाने वाले शकरकंद हैं। सामान्यतः उड़ीसा में लाल किस्म की खेती की जाती है जिसका आकार गोल होता है। अंडाकार वाला बहुत जल्दी खराब हो जाता है, जबकि गोल और लाल वाला अधिक दिनों तक टिकता है। खेती के दौरान अंडाकार पौधों को गोल पौधों की तुलना में अधिक पानी की आवश्यकता होती है।
एक अनुमान के अनुसार ओडिशा की वार्षिक आलू की मांग लगभग 1.3 मिलियन मीट्रिक टन है। लेकिन ओडिशा में आलू का कुल उत्पादन तीन लाख टन से भी कम है. हर साल आलू की कीमत में अत्यधिक वृद्धि के कारण ओडिशा में उपभोक्ताओं को परेशानी होती है। ओडिशा का आलू की कीमत में उतार-चढ़ाव पर कोई नियंत्रण नहीं है क्योंकि यह अपनी आलू की मांग को पूरा करने के लिए पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और बिहार जैसे अन्य राज्यों पर निर्भर है।
ओडिशा सरकार ने राज्य को आलू उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहले 2015-16 में आलू मिशन शुरू किया था। वित्तीय वर्ष 2017-18 तक ओडिशा में आलू का उत्पादन 11,25,000 टन तक बढ़ाने की परिकल्पना की गई है। इस मामले में पूरी तैयारी और जानकारी के साथ फिर पहली की जा रही है।