सेब की फसल हिमाचल प्रदेश में बागवानों करके चेहरे की रंगत और बाजार की चहल-पहल तय करती है। पिछले पांच वर्षों की तुलना में इस सीजन में सबसे कम सेब उत्पादन हुआ है। हिमाचल में वर्ष 2018 में 1.65 करोड़ पेटियों का उत्पादन हुआ था। इस बार भी उत्पादन लगभग दो करोड़ पेटियों के नीचे सिमटने की संभावना है।
कृषि विपणन बोर्ड (एपीएमसी) के प्रबन्ध निदेशक हेमिश नेगी ने बताया कि अब तक 1.77 करोड़ सेब पेटियां राज्य के अंदर और बाहर भेजी जा चुकी हैं। उन्होंने कहा कि किन्नौर समेत राज्य के ऊंचे इलाकों से सिर्फ कुछ लाख पेटियों के और आने की उम्मीद है। ऐसे में सेब सीजन के अंत तक दो करोड़ पेटियों के आसपास उत्पादन का अनुमान है। किन्नौर में सेब सीजन नवम्बर तक चलता है। जबकि अन्य सेब बाहुल्य इलाकों में सेब सीजन खत्म हो चुका है।
बागबानी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष 1.77 करोड़ पेटियों में से 88 लाख 36 हजार 528 सेब की पेटियां हिमाचल में कृषि विपणन बोर्ड (एपीएमसी) की मंडियों में बिकी हैं, जबकि 87 लाख 44 हजार 136 सेब की पेटियां बाहरी राज्यों की मंडियों और हिमाचल में एपीएमसी की मंडियों के बाहर बिकी हैं। राज्य में 2010 में अब तक का सबसे अधिक उत्पादन हुआ था, जब पांच करोड़ से अधिक पेटियों का उत्पादन किया गया था। पिछले 13 वर्षों में, राज्य ने केवल तीन बार- 2013, 2015, 2019 , 2021 और 2022 में पांच बार तीन करोड़ पेटियों का आंकड़ा पार किया।
हिमाचल के सेब बाहुल्य क्षेत्रों में इस साल असामयिक बर्फबारी, सूखे और ओलावृष्टि के कारण सेब का बंपर उत्पादन नहीं हो पाया। दरअसल सेब की पैदावार मौसम के विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। इस बार शुरू से ही सेब पर मौसम की मार रही। जनवरी-फरवरी में कम बर्फ गिरने से सेब को चिलिंग आवर नहीं मिल पाए। इसके बाद मार्च व अप्रैल माह में बेमौसमी बारिश ने सेब की फ्लावरिंग पर असर डाला। मई व जून माह में हुई ओलावृष्टि ने सेब की फसल को तबाह कर डाला।
सेब की फसल हिमाचल प्रदेश में हर साल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से हजारों लोगों को रोजगार देती है। इसमें उत्पादकों के परिवार के अलावा, ट्रांसपोर्टर, कार्टन उद्योग, दवा, खाद कंपनियों, प्रूनर से लेकर ढाबा संचालक और दुकानदार तक शामिल हैं।