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हरियाणा : खारी पानी से सिंचाई करके भी होगी मंसूर की भरपूर फसल

हरियाणा सहित यमुना नदी के आस-पास की ज़मीन उपजाऊ होने के बावजूद पानी खारा है। नमकीन(खारा) पानी से खेतों की सिंचाई करने से कई परेशानियां सामने आती हैं। कॄषि वैज्ञानिकों ने लंबे अनुसंधान के बाद मंसूर की दो नई किस्म तैयार की हैं।

हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में जिस लवणीय भूमि में मसूर का एक दाना भी नहीं होता है, अब वहां मसूर की फसल लहलहाएगी। इसके लिए करनाल के केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने शोध के बाद मसूर की दो नई किस्मों के बीज तैयार किए हैं, जो अब शीघ्र किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा। खास बात ये है कि नई किस्मों के बीज से तैयार मसूर की दाल स्वादिष्ट और पौष्टिक भी होगी, क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा सामान्य मसूर से अधिक होगी।

हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में जिस लवणीय भूमि में मसूर का एक दाना भी नहीं होता है, अब वहां मसूर की फसल लहलहाएगी। इसके लिए करनाल के केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने शोध के बाद मसूर की दो नई किस्मों के बीज तैयार किए हैं, जो अब शीघ्र किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा। खास बात ये है कि नई किस्मों के बीज से तैयार मसूर की दाल स्वादिष्ट और पौष्टिक भी होगी, क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा सामान्य मसूर से अधिक होगी।

हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में जिस लवणीय भूमि में मसूर का एक दाना भी नहीं होता है, अब वहां मसूर की फसल लहलहाएगी। इसके लिए करनाल के केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने शोध के बाद मसूर की दो नई किस्मों के बीज तैयार किए हैं, जो अब शीघ्र किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा। खास बात ये है कि नई किस्मों के बीज से तैयार मसूर की दाल स्वादिष्ट और पौष्टिक भी होगी, क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा सामान्य मसूर से अधिक होगी।

इन किस्मों की बुवाई 15 अक्तूबर से सात नवंबर तक की जा सकती है। दोनों मसूर की किस्में लवण सहनशील हैं, यानी ये फसलें वहां बेहतर पैदावार के साथ उगाई जा सकती हैं, जहां अब तक दाल कुलीय फसलें होती ही नहीं थीं। ये किस्में 108 से 116 दिन में पक कर तैयार हो जाएंगी। पौधे की लंबाई 30 से 32 सेमी है। ये दोनों किस्में लवणग्रस्त मिट्टी वाले खेतों में 11 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और सामान्य खेतों में 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देंगी। क्षारीयता की सहनशीलता 8.8 पीएच मान तक होगी। लवणता यानी ईसी मान 7 डेसी साइमन प्रति मीटर तक की होगी।

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