धान की एक किस्म है- मुश्क बुडजी’ । अपने लजीज स्वाद और खुशबू की वजह से जम्मू-कश्मीर में हरदिल अजीज है। इन दिनों इस किस्म को कश्मीर -घाटी के कम बोते हैं। सूबे की सरकार इस चावल की गुणवत्ता और खाड़ी देशों से इसकी मांग को देखते हुए इस धान की गुणवत्ता के मद्देनजर इसका पैदावार क्षेत्र बढ़ाने के लिए कोशिश कर रही है।
दक्षिण कश्मीर के कोकरनाग के पांच गांवों में 250 हेक्टयर से अधिक भूमि पर उगाई जाने वाली मुश्क बुदजी को कृषि विभाग और कृषि विश्वविद्यालय के प्रयासों के कारण अगस्त में जीआइ टैग प्राप्त मिला था। यह खास फसल विशेष जलवायु परिस्थितियों में उगाई जाती है। इसके क्षेत्रफल का विस्तार करने के लिए घाटी के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न क्षेत्रों की खोज कर रहे हैं।
पिछले साल उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने अगले पांच वर्षों में कृषि और संबंधित क्षेत्रों के समग्र विकास कार्यक्रम के तहत 5013 करोड़ का प्रविधान 29 परियोजनाओं के लिए करते हुए मंजूरी दी थी। इसका मकसद कृषि अर्थव्यवस्था को बदलना और प्रदेश को विकास के नए रास्ते पर लाना, निर्यात को बढ़ावा देना और केंद्र शासित प्रदेश में किसान समृद्धि और ग्रामीण आजीविका सुरक्षा के एक नए अध्याय की शुरुआत करना है।
शेर-ए-कश्मीर कश्मीर कृषि, विज्ञान और तकनीक विश्वविद्यालय कश्मीर के विशेषज्ञों के अनुसार चावल की उच्च कीमत वाली पारंपरिक किस्म की खेती खत्म होने की कगार पर पहुंच गई थी। यह कश्मीर के कुछ हिस्सा तक ही समिति थी। क्योंकि इसे बीमारी ने चपेट में ले लिया था। उत्पादन में गैर एकरूपता, गुणवत्ता वाले
बीजों की कमी, खराब उपज क्षमता और अधिक खेती देने वाली धान की किस्मों के क्षेत्र के विस्तार के कारण ही इसके क्षेत्रफल में कमी आई।
कृषि उत्पादन और किसान कल्याण विभाग कश्मीर के निदेशक चौधरी मोहम्मद इकबाल ने बताया कि हमारा लक्ष्य कृषि और संबंधित क्षेत्रों के समग्र विकास योजना के तहत अगले तीन वर्षों में पांच हजार हेक्टयर भूमि को फसल की खेती के तहत लाना है। हम मुश्क बुदजी को बड़गाम तक विस्तारित करने में सफल रहे हैं। उम्मीद है कि अधिक किसान इस फसल की खेती करेंगे जिससे बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इसका उत्पादन बढ़ेगा।