भिंडी एकक लोकप्रिय सब्जी है। इसे साल में दो बार उगाना संभव है। किसान थोड़ी सजगता से अधिक पैदावार ले सकते हैं। खेत की अच्छी तैयारी के बाद किसान उन्नत बीज का चयन करें। उन्नत बीज से अधिक पैदावार लेकर किसानों को ज्यादा मुनाफा मिल सकता है।
गौरतलब है कि भिंडी की फसल फ्यूसेरियम विल्ट, पाउडरी फफूंदी, पत्ती धब्बा और पीली शिरा मोज़ेक वायरस आदि जैसे विभिन्न रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है। जो फसल की गुणवत्ता और उपज को हानि पहुंचाते है। इनमें से पीला शिरा मौजेक वायरस रोग या शिरा-समाशोधन भारत के सभी भिंडी उत्पादक क्षेत्रों में सबसे विनाशकारी वायरल रोग है।
भिंडी की फसल में पीला मोजेक नामक वायरस की बीमारी ज्यादातर लगती है। इस बीमारी को भिंडी की फसल का मुख्य रोग माना जाता है। इस बीमारी से भिंडी की फसल के पत्तों की शाखाएं पीली पड़ जाती है और ज्यादा प्रकोप होने पर पूरी पत्ती पीली हो जाती है। जिससे पूरी फसल नष्ट हो जाती है। यह बीमारी सफेद मक्खी के कारण गर्मी और शुष्क मौसम में ज्यादा फैलती है।
इस रोग को भिंडी की फसल में फैलने से रोकने के लिए आप 15 लीटर पानी में 10 ग्राम Acetamiprid 20% एसपी या फिर 25 ग्राम Diafenthiuron 50% डब्लूपी मिलाकर फसल पर छिड़काव करें, जिससे यह रोग जल्द खत्म होगा।
इस रोग के नियंत्रण के लिए आप 10 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL को 15 लीटर पानी में मिलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं।
भिंडी को खाद कब और कैसे दें?
भिंडी की बुवाई के 15 से 20 दिन बाद जब भिंडी के पौधे पर एक दो पत्ते दिखने लग जाए तब यूरिया खाद का प्रयोग करें।
एक एकड़ जमीन में 15 से 20 किलोग्राम यूरिया खाद डालें।
इसके आलावा आप एनपीके 52, महाधन और बायोवीटा को मिलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे आपकी फसल का विकास अच्छे से होगा।
इसके अलावा आप भिंडी की फसल में जैविक खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।