पारस अमरोही
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना की फसल प्रमुख फ़सल है। गन्ना यहां के किसानों का सामाजिक व आर्थिक आधार है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना इस इलाके की सियासत का भी आधार बना हुआ है। चीनी मिलों पर गन्ना मूल्य भुगतान का समय पर भुगतान न होने के बावजूद गन्ना किसानों का लोकतंत्र में अटूट विश्वास है।
गन्ना उत्पादक किसान धर्म की बजाय अपनी खेती को बेहतर बनाने में आस्था रखते हैं। किसानों के भाईचारा ईख जैसा ही मीठा होता है। इधर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग फैलने से किसानों की चिंता बढ़ी है। सहारनपुर, बिजनौर, बागपत, मेरठ, मुजफ्फरनगर, हापुड़, अमरोहा, मुरादाबाद, संभल और रामपुर जिलों में गन्ने में लाल सड़न रोग को लेकर परेशान हैं।
गन्ने की प्रजाति को. 238 किसानों के लिए काफी अच्छी प्रजाति मानी जाती है. इस प्रजाति से गन्ने का काफी ज्यादा उत्पादन होता है. वहीं इसमें शर्करा की मात्रा भी ज्यादा पाई जाती है। सभी जिलों में इन दिनों गन्ने की यह प्रजाति कई गांव में लाल सड़न रोग से प्रभावित होने लगी है। इस प्रजाति के जनक पद्मश्री से सम्मानित डॉ. बख्शी राम ने किसानों को लाल सड़न रोग की पहचान करने व उनके रोकथाम करने के बारे में सुझाव दिए ह।
लाल सड़न रोग के लक्षण मई-जून माह में दिखाई देने लगते हैं लेकिन बरसात के बाद जुलाई-अगस्त महीने में इस रोग के लक्षण बहुत तेजी से दिखाई पड़ते हैं। किसान ग्रसित गन्ने के झुंड को उखाड़ कर जला दें अथवा गन्ने के खेत से दूर जाकर उन्हें नष्ट कर दें। उखाड़े गए स्थान पर 10 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर डालकर मिट्टी से ढक दें।
किसानों को ग्रसित गन्ने की फसल को लाल सड़न रोग से बचने के लिए थिओफिनेट मिथाइल रसायन की 400 ग्राम मात्रा को 200 से 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। रोग ग्रसित खेतों की मेड़ को ऊंची कर दें ताकि ग्रसित खेत का पानी दूसरे खेतों में न जाए ताकि दूसरे खेतों को इस बीमारी से बचाया जा सकता है। डॉ. बख्शी राम ने को.238 प्रजाति के स्थान पर दूसरी रोग रोधी किस्म 015023 वह को. 0118 की बुवाई करने का सुझाव भी दिया है। images credit – google