इस साल मानसून की बेठिकाना बारिश ने हल्दी की तैयार होती फसल को नुक़सान पहुंचाया। पांच हजार रुपए कुंतल वाली हल्दी अब साढ़े बारह हज़ार तक बिक रही है। कारोबारियों का कहना है कि जीरा के बाद अब हल्दी की वजह से बाज़ार की रंगत बदल गयी है।
महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे प्रमुख हल्दी फसल उत्पादक राज्यों में बारिश के कारण चमकीले पीले रंग के इरोड मंजल किस्म की मांग बढ़ गई है, क्योंकि यहां विनियमित बाजारों में 12 वर्षों के बाद उपज की कीमत 12,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है।
महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कुछ दिनों तक भारी बारिश हुई, जिससे कटाई के लिए तैयार 40% से 50% हल्दी खराब हो गई। चूंकि साल की शुरुआत में हल्दी ₹5,000 प्रति क्विंटल से भी कम कीमत पर बेची गई थी, इसलिए देश भर के अधिकांश किसानों ने अपने स्टॉक किए हुए हल्दी बीज भी बेच दिए थे। किसानों के पास हल्दी का भंडार न होने और मांग बनी रहने से तेज़ी बनी हुई है।
हल्दी का निर्यात बढ़कर 23 लाख बैग हो गया है, प्रत्येक बैग का वजन 50 किलोग्राम है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 33% की वृद्धि है।दिसंबर 2024 तक हल्दी की भारी कमी की आशंका के कारण हल्दी की कीमत बढ़ रही है।
व्यापारियों ने कहा कि हल्दी की कीमत आखिरी बार 2011 में ₹10,000 प्रति क्विंटल तक पहुंची थी, जिसके बाद कई वर्षों तक औसत कीमत ₹7,000 और ₹8,000 प्रति क्विंटल के बीच रही। कीमत में गिरावट का कारण अन्य राज्यों में आवक की कमी है।