युक्रेन और रूस के बीच जंग जारी है। युक्रेन दुनिया में गेहूं और सूरजमुखी की खेती करने वाला प्रमुख निर्यातक देश है। भारत भी युक्रेन से सूरजमुखी के बीज मंगाकर वनस्पति तेल की कमी पूरी करता है। इस साल भी युक्रेन और रूस में जंग जारी है और भारत में सूरजमुखी की खेती का रकबा कम हुआ है।
भारत में सूरजमुखी की खेती पर बरसात और खराब मौसम का खराब असर पड़ा है। सूरजमुखी की न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर हरियाणा में किसानों ने फैसलाकुन आन्दोलन करने का अनुभव जुटाया ही है। इस बार हरियाणा के अधिकांश जिलों में मूसलाधार बारिश बारिश और बाढ़ से सूरजमुखी की खेती पर बुरा असर पड़ा है।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 18 अगस्त तक सूरजमुखी की बुआई का रकबा 64% घटकर 0.66 लाख हेक्टेयर (एलएच) रह गया है, जो एक साल पहले 1.85 लाख हेक्टेयर था. क्षेत्रफल में तीव्र गिरावट मुख्य रूप से सबसे बड़े उत्पादक राज्य कर्नाटक में देखी गई है। क्योंकि राज्य के प्रमुख उत्पादक मानसून की देरी और क्षेत्र में कम बारिश से प्रभावित हुए हैं।
इसके अलावा, सूरजमुखी उत्पादकों, जिन्हें पिछले सीजन में बाजार की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम होने के कारण कम मुआवजा मिला था, उन किसानों ने मक्का और दालें बोने का मन बना लिया है। कर्नाटक में तिलहनों की बुआई भी प्रभावित हुई हैं।कर्नाटक में इस साल सूरजमुखी की बुआई केवल 0.59 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 1.59 लाख हेक्टेयर था।
भारत में वर्ष 1992-93 में सूरजमुखी की खेती 26.68 लाख हेक्टेयर में होती थी, जो वर्ष 2020-21 में घटकर 2.26 लाख (करीब 8.47 फीसदी) हेक्टेयर रह गई है। इस साल आंतरिक कर्नाटक में 27 फीसदी कम मॉनसून बारिश हुई है, जबकि उत्तरी आंतरिक कर्नाटक में छह फीसदी की कमी है।आंध्र प्रदेश की बात करें तो इस साल मानसून में 27 फीसदी की कमी देखी गई है।
तमिलनाडु में सूरजमुखी के रकबे में एक साल पहले के 0.03 लाख हेक्टेयर की तुलना में 0.01 लाख हेक्टेयर की गिरावट देखी गई है। कमोबेश कहीं बारिश न होने और कहीं लगातार बारिश होने से सूरजमुखी की खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है।
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